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________________ ११५ जिन्होंने एक पूजाविधि एवं संहिता की भी रचना की थी। [पासू. १०७] १२. प्रसिद्ध एवं उपलब्ध प्राकृत 'इंद्रनंदि संहिता' के रचयिता —क्योंकि उन्होंने वसुनंदि और एकसंधि भट्टारक का भी उल्लेख किया है, बतः १२वीं शती ई. के उपरांत हुए होने चाहिएं। [वासू. ७१,१०७] १३. प्रतिष्ठापाठ के कर्ता इन्द्रनंदि, जिसका उल्लेख अय्यपा ने अपने जिनेन्द्रकल्पानाभ्युदय या विद्यानुवादांग (१३१९ ई० ) में किया है, और हस्तिमहल के प्रतिष्ठाविधान में भी हुआ हैअतः इम इन्द्रनंदि का समय ल० १२०० ई० है । [ प्रसं. १०, १०७; प्रवी. 1. ८१] १४. बज्रपंजराराधना के कर्ता इन्द्रनंदि । [ प्रसं. ८९ ] १५. जिनका उल्लेख प्रवचन- परीक्षा के कर्ता पं० नेमिचन्द्र (१५वीं शती ई०) ने अकलंकदेव के पश्चात् और अनन्तवीर्य, वीरसेन, जिनसेन आदि से पूर्व हुए एक ब्राह्मणकुलोत्पन्न पुरातन जैनाचार्य एवं प्रथकार के रूप में किया है। [ प्रसं. १०१] १६. इन्द्रनंदि, जिनका उल्लेख वर्धमान मुनि (१५४२ ई०) ने एक पुरातन ग्रंथकार के रूप में, तथा क्राणूरगण के मुनियों में जefiniदि के पश्चात मोर गुणचन्द्र के पूर्व किया है । [जैशिसं. iii. ६६७; प्रसं. १२४, १३२ ] १७. वह इन्द्रनंदि, जिनसे कनकनंदि ने, जो नेमिचन्द्र सि. च. के एक गुरु थे, सकलसिद्धान्त को सुनकर अपने सत्वस्थान (विस्तर सत्वत्रिभंगी ) की रचना की थी। [ गोम्मट. कर्म. ३९६; पुर्जवास. ७२ ] १८. प्रतिष्ठाकल्प बौर ज्यालिनोकल्प के रचयिता इंद्रनंदि मुनीन्द्र, जो १९८३ ई० एक लि. ले के अनुसार विमलचन्द्र और परवादिमल्ल के मध्य हुए थे। [जैसिसं. iii. ४१०] १९. अनुमानतः १०वीं शती के एक कसड शि. ले. में गुणचन्द्र मुनि के साथ उल्लिखित इंद्रनंदि मुनि [ शिसं. iv. ११५] २०. चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य षष्ठ (१०७६- ११२६ ई० ) के एक कड शि. ले. के अनुसार मूलसंघ- देशीगण - पुस्तकगच्छ 3 ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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