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________________ इनके उपरांत क्रमशः अमरगति-बहुमंदि-युषति-माणिक्यनंदि का उल्लेख है। विद्यानन्द का समय.... है, बोर सामिपयनन्दि काम.......बस इन इमानन्दि का समय म.८५.ई. है। सिं ... १.५] ५. बिन इनबिशिष्य समन्दि, प्रशिम्प बप्पनन्दि और प्रमशिष्य ज्यालिनीकरूप (९३९६.) के कत्ता इम्बनंदिदि थे। [प्रो. i. ९१ पृ. १३८] ६. 'मालिनीकल्प' (९३९६०) के पमिता नन्द्रनंदि योगीन्द्र जो बप्पमंदि बिष्य थे, महाविद्वान और मनवादी थे- इस पथ की रचना उन्होंने राजधानी बाबवेट में राष्ट्रकुट सम्राट कृष्ण तृ. के शासन काल में की थी। [प्रवी. i. ९१: प्रमुख, ७. वह 'श्रुतसागर-पारण' आचार्य इसनंदि बिन्हें गोम्मटसारादि (ल. ९८०) के कर्ता भाचार्य नेमियन सिद्धान्त चक्रवर्ती ने गुरुरूप से स्मरण किया है सम्बिसार (गा. ६४८) में तो स्वयं को स्पष्टतया 'बच्छ' (बस या शिष्य) कहा है। ८. प्रसिद्ध 'भुतावतार कथा' के रचयिता इन्दनंदि- उक्त कथा में उन्होंने बीरसेन-जिनसेन (८३७.)न्त ही सिद्धांतपंचों की टीकानों बादि का उल्लेख किया है, अतएव इनका समय अनु. मानत:ल. ९५.६० मा १०वीं शती है। [जैसो. ११०, १२३, २२०] ९. अवपिड नामक प्रायश्चित शास्त्र (श्लो. सं. ४२.) के रचयिता योगीन्द्र इन्द्र नंदि मणी-यह शास्त्र उन्होंने चतुःसंघ एवं चतुर्वर्ण के हितार्थ रचा था। [पुर्जवासू. १०९] १०. नीतिसार या नोलिसार-समुन्धय, अपरनाम समयभूषण (ग्लो. सं. ११३) के रचयिता इन्द्रनंदि। ग्रंथ में जिन पूर्वबर्वी बाचायों का उल्लेख हुमा है, उनमें से. कालक्रम की दृष्टि से, १०वी सती के उत्तरा में हुए सोमदेव बोर नेमिचन्द्र बि... है, बत: यह इन्द्रनंदिन.१.... या कुछ उपरान्त केहै। [पुषवाचू. ७१] ११. इन्द्रवंदि-संहिता में उल्लिखित ह पूर्ववर्वी पुरातन इंद्रनंदि ऐतिहासिकम्पत्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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