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________________ कुन्दकुन्वन्धिय के प्रति दिन शिष्य बाहुबलि भाचार्य ने बिनविर बनवोकर भूमिदान प्राप्त किया था। [क्षिसं.iv.] २१. हरूपी से प्रान्त १२वीं शती के प्रारम. एक भग्नस्तंभ पर अंकित कर शि.मे.के अनुसार गोल्लापार्य के प्रशिष्य, मुषचन्द्र के शिष्य, और मन्दिमुनि एवं ति (गायिका श्रीमती कन्ति, प्रसद्धि कवियत्री) के शायद सपर्मा इन्द्रमन्दि। [शिसं. iv. ३१३] उपरोक्त इन्द्रनंविषों में कई एकपरस्पर अभिल हो सकते हैं। ईशपाल, ईन्द्रपाल या इंडपाल गोप्तीपुष ने, जो वीर योदा पा और पोठय एवं शकों के लिए कालव्यान था, मथुरा में, ईसापूर्व १४.१३ मे बहत्पूजा के लिए दान दिया था और उसकी भार्या शिवमित्रा ने एक मायागपट स्थापित किया था। [शिसं. ii. ९१. प्रमुख. ६६] इलाालित- सम्राट अशोक मौर्य के पौत्र एवं उत्तराधिकारी जैन सम्राट सम्धति का एक उपनाम। [प्रमुख. ४९] हवामूति गौतम- समस्त वेद-वेदांग में पारंगत, ब्राह्मणकुलोत्पन्न, गौतमगोपीय, तेजस्वी महापडित इंद्रभूति, जो तीर्थकर बदमान महावीर के प्रथम शिष्य एवं प्रधानगणधर थे। दीक्षा ई०पू०५५७; केवल शानमाप्ति ई.पू. ५२७, निर्वाण ई. पू. ५१५ -तीर्थकर की वाणी को द्वादशांग श्रुत में निबद्ध करने का श्रेय इन्हें ही है। [भाइ. ५७-५९] संगीतपुर (हाडवल्लि, उत्तर कन्नड) का जैन नरेगा जिसे बल्लालजीवरक्षक महलाचार्य चारूकीति (ल. ११०० ई.) के प्रशिष्य और श्रुतकीर्ति के शिष्य वाचार्य विषयकोति प्र. की कृपा से राज्य सिंहासन प्राप्त हुमा पान. १२०० ई. मे। [थिसं. iv. ४९.] काष्ठासंब-नदीतटगच्छ के भ० राजकीति के प्रति बोर .. लक्ष्मीसेन के पट्टपर भ० इन्द्रभूषण, जिनको माम्नाय के उत्तर. भारतीय वषेरवाल श्रावकों, मे शायद उन्हीं के साथ ससप काकर, १६६२१० मे अवगवेलगोलको यात्रा की थी। [शिसं.i. एतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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