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________________ देज्ज महाराज के सामंत, इस धर्मात्मा नरेश ने महत्पूजा एवं तपस्वियों की सेवा बादि के लिए ताम्रशासन द्वारा ग्राम बान 'दिया बा-समय न. ६०००। जमि. iv. २२; एइ. २१ पृ. २८९] गाविस- १ श्वेताम्बराचार्य सुस्थित (मुभ) के विप, अपरनाम कालक प्र०, समयईसापूर्व २०२। [जैसो. १०५, २६५] २. कुछ नये. पट्टावलियों के अनुसार सिवसेन दिवाकर के गुरु । जैसो. १६५-१६६] हमरेवरस- कन्नडी श्रीपालभरित्र के कर्ता । (मारा सू. ३२] इनाम - दे. इन्द्रपद । इमानन्दि- १. महाचार्य इन्द्रनन्दि, जिनके शिव महापरि न कोत्तरि (कोसरिखेड़ा, बहिच्छत्रा, जि. बरेली, उ०१०) के पाश्र्वपति (तो. पारवनाथ) के लिए कोई दान दिया था या निर्माण करा या कराया था। लेख संस्कृत में है, गप्तकालीन अनुमानत: ५वी सतो . या उससे कुछ पूर्व का है, अहिच्छत्रा के खंडहरों में एक पाषाण वेदिकास्तंभ पर उत्कीर्ण है, जिस पर ६ महंत मूत्तियां भी उत्कीर्ण है। कोतरि का अर्थ है मंदिरों का ढेर या टोला। [ए. एस.बाई.. २८ शिसं iii. ८४३] २. सातिरोमणि-धीरोषत-संयमी इन्द्रनन्दि आचार्य, जिन्होने मोह विषयादि को जीतकर (श्रवणबेलगोल के) कटवा पर्वत पर समाधिमरण किया पा-ल.७०.ई। शिसं. २.५] ३. इन्द्रनंदि मुनि, जो पापग्रहों का निग्रह करने पाने और राजानों द्वारा पूजित थे, तथा मल्लिषेण-प्रशस्ति में जिनका उल्लेख गगनरेश श्रीपुरुष मुत्तरस शत्रुभयंकर' (७२६-७६ ई.) बारा सम्मानित विमलबाबा के उपरांत मोर राष्ट्रक्ट मरेण कृष्ण प्र. शुभतुंग (७५७-७३ ई.) द्वारा सम्मानित परवादिमल्ल के पूर्व हुआ है अतः न. ७५०-७५ ६.। [विसं. i.५४] ४. जिन नंदिका उल्लेख बिरबत्ति के शि. ले. में विखा. नंदिके शिष्य एवं वामनंदि विष्व के रूप में हवा है ऐतिहासिक व्यक्तिको
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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