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________________ इनकीति इमर किया था। [जैसा. ३०८, १२१] १. मैमापतीर्थ के कारववण के मूल मट्टारक के प्रतिष्य और गुणकीति के शिष्य कामविजेता इन्द्रकीर्ति स्वामी, जिनके छात्र (विद्याशिष्य) सदसि के सामन्त रट्टराज पृथ्वीराम ने ८७५ ६० में जिनालय बनवाकर दान दिया था। [जैशिसं. ii. १३०; प्रमुख. १७७ ] २. सर्वशास्त्र कविकुमुदराज जैनाचार्य इन्द्रकोर्ति, जिन्होंने पूर्वकाल में गंगनरेण दुर्विनीत द्वारा निर्माणित कोगलि के जिनमंदिर के लिए, चालुक्य त्रैलोक्यमस्म के समय में, १०५५ ६० में दान दिया था। [जैशिसं. iv. १४३; प्रमुख. १२० ] ३. इन्द्रकीर्ति पण्डित, जो चालुक्य भूलोकमल्स के समय, ११३२ ई० में, लक्ष्मेश्वर की गोग्यिय बसदि के सरक्षक थे। [जैशिसं. iv. २१६] ४. रहनरेश लक्ष्मीदेव के १२२८ ई० केलि. ले के अनुसार राजगुरु मुनिचन्द्र के साथ उल्लिखित एवं हुलि को माणिक्यतीर्थद बसदि के अध्यक्ष तथा शुभचन्द्र सि. दे. के सब प्रभाचन्द्र सि. दे. थे, जिनके शिष्य इन्द्रकीति बौर श्रीधरदेव थे । [ देसाई. ११४-११५] पद्मपुराण के कर्ता रविवेणाचार्य (६७६ ई०) के गुरु लक्ष्मणसेन के गुरु अहंनमुनि थे, उनके गुरु दिवाकर यति मे, जो इन इन्द्रगुरु के शिष्य थे, समय लगभग ६०० ई० । [ जैसो. १०१; पुजेबासू. १६२; जैसाइ. २७३ ; पद्मपु. १२३/१६७ ] इग्रजीत कवि- भटेर-हविकंत-शौरिपुर के भट्टारक जिनेन्द्र भूषण के आश्रित ब्रजभाषा के कवि, मैनपुरी में १७८३ या १७८८ ई० में मुनिसुबुतपुराण की रचना की थीं, अन्य रचनाएँ कृबुनाथपुराण, बरनाथपुराण, मल्लिनाथपुराण आदि । [ काहि. २०२; ग्रमा ३३] इन्द्रजीत राजा - दतिया (दिलीपनगर) का कुन्देनानरेश, जिसके पुत्र छत्रजीत के राज्यकाल में, १७७९ ई० में, सोनागिर में एक जिनमंदिर (२०५०) बना था। [शिसं. ४. २७८ . १०७ ] बंध के अधिराज के पुत्र एवं उत्तराधिकारी बोर राष्ट्रकूट इार्षद- ऐतिहासिक व्यक्तिकोश ११५
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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