SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ७५ ] ___ अथ ऊर्ध्वं पूर्वोक्तन्यायेन सम्यग्दृष्टिर्भूत्वा मिथ्यादृष्टिभावनायाः प्रतिपक्षभृतां यादृशी भेदभावनां करोति तादृशी क्रमेण सूत्रसप्तकेन विवृणोति अप्पा गोरउ किण्हु ण वि अप्पा रत्तु ण होइ । अप्पा सुहुमु वि थूलु ण वि णाणिउ जाणें जोइ ॥८६॥ आत्मा गौरः कृष्णः नापि आत्मा रक्तः न भवति । आत्मा सूक्ष्मोऽपि स्थूलः नापि ज्ञानी ज्ञानेन पश्यति ।।८६।।। इसके बाद पूर्वकथित रीतिसे सम्यग्दृष्टि होकर मिथ्यात्वकी भावनासे विपरीत जैसी भेदविज्ञानकी भावनाको करता है, वैसी भेदविज्ञान-भावनाका स्वरूप क्रमसे सात दोहा-सूत्रों में कहते हैं-(आत्मा) आत्मा (गौरः कृष्णः नापि) सफेद नहीं है, काला नहीं है, (आत्मा) आत्मा (रक्तः) लाल (न भवति) नहीं है, (आत्मा) आत्मा (सूक्ष्मः अपि स्थूलः नैव) सूक्ष्म भी नहीं है, और स्थूल भी नहीं है, (ज्ञानी) ज्ञानस्व रूप है, (ज्ञानेन) ज्ञानदृष्टिसे (पश्यति) देखा जाता है, अथवा ज्ञानी पुरुष योगी ही · ज्ञानकर आत्माको जानता है । . भावार्थ-ये श्वेत काले आदि धर्म व्यवहारनयकर शरीरके सम्बन्धसे जीवके कहे जाते हैं, तो भी शुद्धनिश्चयनयकर शुद्धात्मासे जुदे हैं, कर्म जनित हैं, त्यागने योग्य हैं । जी वीतराग स्वसंवेदन ज्ञानी है, वह निज शुद्धात्मतत्त्वमें इन धर्मोको नहीं लगाता, अर्थात् इनको अपने नहीं समझता है ।।८६।। अथ अप्पा बंभणु वइसु ण वि ण वि खत्तिउ ण वि सेसु । पुरिसु पाउंसउ इत्थि ण वि णाणिउ मुणइ असेसु ॥८७॥ आत्मा ब्राह्मणः वैश्यः नापि नापि क्षत्रियः नापि शेषः । पुरुषः नपुंसकः स्त्री नापि ज्ञानी मनुते अशेषम् ।।७।। आगे ब्राह्मणादि वर्ण आत्माके नहीं हैं, ऐसा वर्णन करते हैं-(आत्मा) आत्मा (ब्राह्मणः वैश्यः नापि) ब्राह्मण नहीं है, वैश्य भी नहीं है, (क्षत्रियः नापि) क्षत्री भी नहीं है, (शेषः) बाकी शूद्र भी. (नापि) नहीं है, (पुरुषः नपुंसकः स्त्री नापि) पुरुष नपुसक स्त्रीलिंगरूप भी नहीं है, (ज्ञानी) ज्ञानस्वरूप हुआ (अशेष) समस्त वस्तुओंको ज्ञानसे (मनुते) जानता है ।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy