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________________ [ ७४ ] भावार्थ - मिथ्यादृष्टि जीव वीतराग निर्विकल्पं परमसमाधिसे उत्पन्न परमानन्द परमसमरसीभावरूप सुखसे पराङ्मुख हुआ निश्चयकर महां दुःखरूप विषयोंको सुखके कारण समझकर सेवन करता है, सो इनमें सुख नहीं हैं || ८४ | एवं त्रिविधात्मप्रतिपादक प्रथम महाधिकारमध्ये 'जिउ मन्द्र' इत्यादि त्राटकेन मिध्यादृष्टिपरिणतिव्याख्यानस्थलं समाप्तम् ॥ तदनन्तरं सम्यग्दृष्टिभावनाव्याख्यानमुख्यत्वेन 'कालु लहेविणु' इत्यादि सूत्रा कथ्यते । अथ कालु लहेविणु जोइया जिमु जिमु मोहु गलेइ । तिमुतिमु दंसणु लहइ जिउ गियमें अप्पु मुणेड़ ॥ ८५ ॥ कालं लब्ध्वा योगिन् यथा यथा मोहः गलति । तथा तथा दर्शनं लभते जीव: नियमेन आत्मानं मनुते ॥८५॥ इस प्रकार तीन तरह की आत्माको कहनेवाले पहले महा अधिकारमें "जिउ मिच्छतें इत्यादि आठ दोहों में से मिथ्यादृष्टिकी परिणतिका व्याख्यान समाप्त किया । - इसके आगे सम्यग्दृष्टिकी भावनाके व्याख्यानको मुख्यता से "काल लहेविणु" इत्यादि आठ दोहा-सूत्र कहते हैं - ( योगिन् ) हे योगी, (कालं लब्ध्वा ) काल पाकर ( यथा यथा ) जैसा जैसा (मोहः ) मोह ( गलति ) गलता है -कम होता जाता है, (तथा तथा ) तैसातैसा (जीवः) यह जीव (दर्शनं) सम्यग्दर्शनको ( लभते ) पाता है, फिर ( नियमेन ) निश्चयसे (आत्मानं ) अपने स्वरूपको (मनुते ) जानता है । भावार्थ–एकेन्द्रीसे विकलत्रय ( दोइन्द्री, तेइन्द्रो, चोइन्द्री ) होना दुर्लभ है, विकलत्रयसे पचेद्री, पंचेद्री से सैनी पर्याप्त, उससे मनुष्य होना कठिन है । मनुष्यमें भी आर्यक्षेत्र, उत्तमकुल, शुद्धात्माका उपदेश आदि मिलना उत्तरोत्तर बहुत कठिन हैं, और किसी तरह 'काकतालीय न्यायसे' काललब्धिको पाकर सब दुर्लभ सामग्री मिलनेवर भो जैन शास्त्रोक्त मार्गले मिथ्यात्वादिके दूर हो जानेसे आत्मस्वरूपकी प्राप्ति होते हुए जैसा जैसा मोह क्षीण होता जाता है, वैसा वैसा शुद्ध आत्मा हो उपादेय है, ऐसा वि रूप सम्यक्त्व होता है । शुद्ध आत्मा और कर्मको जुदे जुदे जानता है । जिस की रुचिरूप परिणामसे यह जीव निश्चयसम्यग्दृष्टि होता है, यही उपादेय है, यह तात्पर्य हुआ ||५||
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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