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________________ रूप भाव-प्राण है तथा पाच इन्द्रियप्राण, मन, वचन, काय, रूप तीन बलप्राण, आयु और श्वासोच्छ्वास-इस तरह दस द्रव्य-प्राण है। प्राणातिपातिकी-क्रिया-जीव के प्राणो का वियोग करने वाली क्रिया को प्राणातिपातिकी-क्रिया कहते है। प्राणापान-देखिए उच्छ्वास नामकर्म। प्राणायाम-मन, वचन और काय की क्रिया को नियंत्रित करना तथा शभ-भाव रखना प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम के तीन अङ्ग है-श्वास को धीरे-धीरे अदर खींचना कुम्भक है, उसे रोके रहना पूरक है और धीरे-धीरे उसे बाहर छोडना रेचक है। इन तीनो का अभ्यास प्राणायाम कहलाता है। जैनागम मे इसे अधिक महत्वपूर्ण नही माना गया है क्योंकि चित्त की एकाग्रता हो जाने पर श्वास का नियंत्रण स्वत हो जाता है। प्राणावाय-प्रवाद-शरीर-चिकित्सा आदि अष्टाग आयुर्वेद, भूतिकर्म, विषविद्या तथा प्राणायाम आदि के भेद-प्रभेदो का वर्णन करने वाला प्राणावाय-प्रवाद-पूर्व नाम का बारहवा पूर्व है। प्राणिसयम-देखिए सयम। प्रातिहार्य--अर्हन्त भगवान की महिमा और विभूति प्रकट करने वाले प्रातिहार्य होते है। अशोक वृक्ष, तीन छत्र, सिहासन, दिव्यध्वनि, दुन्दुभि, पुष्पवृष्टि, भामण्डल और चौसठ चमर-ये आठ प्रातिहार्य प्रसिद्ध है। जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 171
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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