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________________ दश- वैकालिक सूत्र | अष्टम अध्ययन । व्यवहारे नाहि दोष जानिवे सर्वथा । महावीर उक्त इहा आगमेर कथा ॥५२ शय्या आसनादि याहा हय प्रयोजन । जनशून्य स्थाने साधु करिव स्थापन | वलिवेना तथा था कि नारीर विषय । करिवेना गृहस्थर साथै परिचय ॥ साधु सङ्ग े सदा करि साधु- परिचय | निर्दोष आलापे साधु काटावे समय ॥ ५३ कुक्कुट - शिशुर भय विड़ाल हइते | से हेतु भीतं शिशु थाके दिवाराते ॥ ब्रह्मचारी सेइरूप नारीर शरीर । इहाते प्रभीत हन साधक - सुधीर ॥५४ चित्रयुक्त भित्ति किम्बा स्वलंकृता नारी । कभु ना देखिने साधु संयम पासरि ॥ यथा दृष्टि त्यजे जन शीघ्र सूर्य हेरि । दर्शने विरत तथा साधु हेरि नारी ॥५५ हस्थपाद ये नारीर हये कर्त्तित । कर्ण ओ नासिका हते यिनि विवर्जित || शत वपं वयःक्रम अतिवृद्धा नारी । कभु ना हेरि ताके यति ब्रह्मचारी ! युवती नारीर कंथा कि बलिव आरं । दर्शने अनिष्ट हवे जानिवे उहार ॥५६ १२७
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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