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________________ दश-वकालिक-सूत्र। अष्टम अध्ययन। अप्रीतिजनक याहा, क्रोधेर कारक । उभयेर विरोधिनी अहित जनक ।। ताश भापाय वला निषिद्ध शास्त्रेर । वलिवेना उक्त भाषा आकर दोपेर ॥४८ छ, अल्प परिमित, सन्देह रहित । स्वरादिते पूर्ण याहा साधु प्रकटित ।। अनुब अनीच स्वरे .याहा उच्चारित । उद्वग रहित, याहा सदा परिचित ।। सेइ रुप भाषा सदा सचेतन मुनि । बलिवेन सविनये मङ्गलदायिनी 1188 स्त्रीलिङ्गादि ज्ञाने पटु आचार धारक । प्रकृति प्रत्यय आदि प्रयोग-कारक ।। यदि करे कथा छले वाक्येर स्खलन । उपहास ना करिये ताहारे कखन ॥५० यात्राकाले शुभाशुभ नक्षत्रर नाम । स्वप्नजात भालमन्द किवा परिणाम ) वशीकरणादि योग मंत्रादि औषध । वलिवेना गृहि पृष्ठ साधक सुवोध ॥५५ प्रस्रवन आदि युक्त शुद्ध वासस्थान । परं हेतु सुनिर्मित प्रकृत · भवन ॥ : पर द्वारा व्यवहृत शय्या आसनादि। स्त्री पशु वर्जित स्थान प्रयोजन यदि।।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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