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________________ १२८ दश-वैकालिक-सूत्र । अष्टम अध्ययन । नारीर संसर्ग आरं सरस भोजन। . नख केश प्रभृतिर सत्कार साधन । तालपुट - विपतुल्य बुझि साधुजन । पूर्वोक्त कुकर्म मुनि करिव वजन ।।५७ . शिरः नयनादि अङ्ग प्रत्यक्ष विन्यास। मधुर वचने स्त्रीर कटाक्ष विकाश ।। कभुना हेरिवे उहा यति ब्रह्मचारी। बुझि उहा कामं राग प्रवर्द्धनकारी ॥५८ शब्द रूप रस गन्ध-स्पर्श, गुणान्वित । पुद्गल समूह हय अनित्य कथित ।। परिणाम बुझि साधु मनोज्ञ विपये। करिवेना प्रेमराग, समासक्त हये ॥५६ पुद्गलेर परिणाम विविध प्रकार | शब्दादि विपये सदा अवस्थान तार ॥ एक रूप त्यजि पुन अन्य रूप धरे। . पुद्गल अनित्य विश्व सतत विचरे ।। बुझि साधु त्यजि क्रोध लालसा भीषण। विहार करेन करि आत्मार चिन्तन ॥६०. प्रमादा - विरति रूप 'कर्दम हइते । ये श्रद्धा वाहिर करि मानव जगते॥ गृहाबास तेयागियों साधुत्व आचरें। सेइ श्रद्धा हय श्रेष्ठ गुणेर स्वीकारे॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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