SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૦૮ दश-वैका लिक-सूत्र |. सप्तम अध्ययन | काटिवार योग्य इहा पक्क मध्यभाग । कोमलता युक्त इहा हवे दुइभागं ॥ एइरूप कथा साधु कभु ना वलिवे। अहिंसा पालने सदा सतर्क थाकिवे ||३२ असमर्थ आम्र वृक्ष फलेर धारणे । इहारा अनेक फल धरे क्षणे ॥ ग्रहणेर कालयोग्यं फल धरे एरा । सुकोमल फल धरि रहेछे इहारा ॥ पथे साधु पूर्व्वरूप नेहारि पथिके ! पथ परिचय सूत्रे वलिवे ताहाके ॥ ३३ शाल्यादि ओषध पक्क, नील ए शवय । काटन रोपण योग्य धान्यादि निचय । भाजिवार योग्य इहा वालभक्ष्य हय । वलिवेना उक्तरुपे साधु सहृदय || ३४ पथ प्रदर्शन आदि कार्य्ये साधुगण । निम्नरुपे वलिवेक अति विचक्षण ।। प्रादुर्भूत हइयाछे हेया कत धान । निष्पादनप्राय इहा कर प्रणिधान || आरओ रहेछ कत निष्पन्न निर्गत | निर्वात शीर्षक इहा किम्वा विपरीत ।। सात तण्डुल आदिसार एइस्थाने । रहिया वलिवेक पर भाषणे ॥ ३५
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy