SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दश-वैकालिक-सूत्र i सप्तम अध्ययन । प्रासाद तोरण स्तम्भ परिघा अर्गल । अरहट्ट याहा द्वारा तुले कत जल ॥ तरणी प्रभृति सृष्टियोग्य एइ वृक्ष । बलिवेना कखनओ साधक सुदक्ष ||२७ काष्ठासन काष्ठपात्र हाल वा मयिका । वलद् शकट तुम्व घानी वा गण्डिका ॥ ये वृक्षे प्रस्तुत हय तादेरे कखन । वलिवेना नाम कभु साधक सुजन ॥२८ रथादि, पर्यङ्क आदि, कपाट आसन । गृहद्वार येइ वृक्षे हइवे गठन ॥ जीवेर नाशक भाषा सेइ वृक्ष नामे । कभु ना चलिये साधु कखनओ भ्रमे ॥२६ उद्यान पर्व्वत किम्बा वन तरुवर | दर्शन करिया साधु गमन तत्पर ॥ किरूप भापाय प्राज्ञ तादेरे वलिवे । निम्ने ताहा वलितेछि अवश्य शुनिवे ||३० जातिमन्त दीर्घवृन्त सुन्दर दर्शन । महालय शाखायुक्त, एइ तरूगण ॥ प्रशाखा - विशिष्ट हय एइ वृक्षराशि । वलवे साधकवर स्वभाव प्रकाशि ॥३१ पक्क हेरि आम्र फल - आदि, कोनस्थाने । पक्क इहा पाकभक्ष्य वलिवेना जने ॥ . · २०७
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy