SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देश - वैकालिक सूत्र | सप्तम अध्ययन । "संखड़ी नामक क्रिया पितृदेव तरे । करिते इच्छुक आमि" वलिवेना कारे ॥ चौरके वधेर योग्य साधु वलिवे ना । दुस्तर सुतर नदी कभु कहिवेना ॥ ३६ संखड़ीके वलिषेक संकीर्णा संखड़ी । चौरके वलिवे साधु प्राण रक्षाकारी ॥ प्रयोजने हये पृष्ट नदीर विषय । afe नदी तीर्थ समतल - मय ॥३७ साधुदेर वर्जनीय धराय सतत । प्रवर्तन निवर्त्तन आदि दोप यत ॥ नेहारि तटिनी कभु साधु तपोधन । वलिवेना नदी पूर्णा भ्रमेओ कवन ॥ सन्तरण योग्या नदी अथवा नदीर | जल पेय, बलिवेना तटस्थ प्राणीर ||३८ वलिये सलिलराशि नेहारि नदीर । जलपूर्णा नदी एइ अगाध गम्भीर ॥ अतिशय वेगशील इहार उदक । विस्तृत रहेछ जल, स्वस्वार्थे साधक ||३६ परेर निमित्त कृत किम्वा क्रियमाण | पापयुत कार्य जानि भावी वर्त्तमान || उहार सम्बन्धे कभु काहारे कखन | 'पापवाक्ये वलिवे ना साधु तपोधन ॥४० १०९
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy