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________________ __सार्वजनिक दवाखाने खोलकर उसमे धन्वन्तरि जैसे वैद्योंको नियुक्त करदिया गया, वीमारोंकी सारसंभालके लिये कुशलपरिचारक (नौकर ) रखे गये, जो रोगियोंको हर तरहसे आराम पहुंचाएँ । रोगियोंके सोनेकी शय्याएं, विछानेकी तलाइयें, जंगल पिशाबके लिये स्वच्छ मकान, गाय, बैल, घोडे, आदि जानवरोंकी चिकित्साके साधन उनकी खोराकके योग्य पदार्थ, पशुओंके बैठने उठने फिरनेकी जगहें, उनकी सफाई, वैद्योंकी पूरी आजीविका, नौकरोंको उचित तनखाह और इनाम, दवा खानेके नौकरोंको खासकर यह आज्ञा दीगई थी कि वह अल्प आरंभसे औषधियां तयार करें। जिन औपधियोंमे जीव पड़े हुए हों उनको काममें न लें, प्रत्येक वनस्पतिसे कार्य सिद्ध होय तो साधारणको न काटे, जो काम सूखीसे सरता है उसके लिये हरीको न काटें। अगर सूखीसे नही सरता तो हरिकोभी काटें। . इन सब कार्यकर्ताओंके प्रत्येक कार्यपर खुद दोनों भाइयोंकीनिगरानी रहनेसे कार्यवाहक बडी सावधानीसे कार्य करते थे। रोगी लोग घरोंमें वह आराम नही पाते थे कि जो उन्हे जगत् वत्सल वस्तुपालके औषधालयोंमे मिलता था। ॥सामाजिक टिप्पणियां ॥ जैन शास्त्रोंका फरमान है कि-अन्नके दानसे, पानीके दानसे, मकानके देनेसे वस्त्रके देनेसे, हितकारी मीठा वचन बोलनेसे, गुणीजनको नमस्कारके करनेसे, मनद्वारा सवका
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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