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________________ ५६ भला चाहने से, कायासे परोपकार करनेसे, शुभप्रवृत्ति करने करानेसे, शय्या, संथारा, आसन आदिके देनेसे, जीव पुण्यका बन्ध करता है । मंत्रीराज शरदीकी मौसम आतेही लाखों रुपयोंके कपडे गरीबों को बांट देते थे । मुनिराजोंको शुद्ध निर्दोष कल्पनीय वस्त्र देनेका तो उनका परम कर्त्तव्य ही था । जहां सुनाजाता कि मनुष्य या पशुओं को पानीकी कुछ तंगी पडती है वहां तत्काल कुए, तालाव खोदाकर प्राणियों को सुखी करते थे । मंत्रीराजने ऐसे हजारों जलाशय खुदवाये थे, और हजारों ही भागे टूटों की मुरम्मतें करवाई थी । हजारों सरायँ और Tari धर्मशालाएँ आपने नयी बनवाई थी । आखीर इतना ही कहना बस है कि कलियुगको आपने सत् युगका वेष पहनाकर उसकी शकलको विलकुल बदल दिया था । ॥ कुछ खास बातें ॥ वस्तुपाल तेजपाल के अनुपमचरितके विषयमे संस्कृतके अनेक ग्रन्थ मौजूद हैं, जैसे कि - कीर्त्तिकौमुदी १ सुकृतसागर २ वसन्तविलास ३ वस्तुपाल तेजपालप्रशस्ति ४ वगैरह वगैरह, परन्तु सबमे बडा ग्रन्थ है - जिन हर्षक विकृत " वस्तुपाल - चरित्र" इस सविस्तर चरित्रका गुजराती भाषान्तरभी श्रीजैनधर्मप्रसारक सभा भावनगरकी तर्फसे छपचुका है । उपर्युक्त चरित्रग्रंथोंसे और उनके किये कार्योंसे निश्चय होता है कि जैसे चौलुक्यचिन्तामणि महाराज कुमारपाल पक्के जैन धर्मानुयायी थे, वैसे वस्तुपाल तेजपालभी बडे MUS
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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