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________________ ३९ कुमारदेवीका परिचय कराया, और रजनीमें देखा, सुना, सर्व वृत्तान्त सुनाया । मंत्रीराज अव आनन्दपूर्ण हृदयमें कुमारदेवीकी प्राप्तिके उपाय चिंतन करने लगे, भाविकालमें मुंझे एक अनुपम स्त्रीरत्न प्राप्त होगा । संसारमें स्त्रीनेह दृढशृङ्खला है, उसमेंभी जगत्उद्धारक शासनप्रभावक दिव्य कीर्ति और कांतिवाले पुत्ररत जिसकी कुक्षिसें पैदा होनेवाले हैं, ऐसी पवित्र सती सुशीला सुरूपा कुमारीपर अश्वराज मोहितहों उसमें आश्चर्य ही क्या ?। ___ आबुमंत्रीसे इस पवित्र कन्याकी याचना की गई, उन्होंनेभी यह उत्तम और श्लाघनीय योग होता देखकर खुशीके साथ कुमारदेवीका आसराजसें परिणयन करा दिया, संसारमें सर्वत्र यशोवाद फैला, आसराजका आजन्मसें आराधन किया धर्मकल्पवृक्ष सफल हुआ। देवगुरु धर्मके आराधनसें और पुरुषार्थचतुष्टयसाधनसे इस दंपतीका जीवन सुखमय व्यतीत होने लगा । जिनको अपने भुजावल और भाग्यवलपर विश्वास होता है उनको स्थानका प्रतिवन्ध बाधक नहीं होता। ___ कुछ अरसेके बाद मंत्रीराज स्वजनोंकी सम्मतिसें कुमारदेवीसह पाटणको छोडकर सुहालक गाममें जाकर रहने लगे । वहां कुमारदेवीने मल्लदेव-वस्तुपाल-तेजपाल-इन तीन पुत्रोंको और सात पुत्रियोंको जन्म दिया । बस इनकी इस संततिमसे यह वस्तुपाल और तेजपालही अपने चरित्रनायक हैं । वस्तुपालकी स्त्रियोंका नाम ललितादेवी और वेजलदेवी था और तेजपालकी स्त्रीका नाम अनुपमादेवी था।
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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