SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंत्रीश्वर अश्वराजने बहुत दिनतक अपने कुटुंबका निर्वाह किया । वस्तुपाल तेजपालने मातापिताको वृद्धावस्थावाले जानकर राज्यकार्यसे सर्वथा मुक्त करदिये, और धर्ममें खूब सहायता दी । आसराजकी और कुमारदेवीकी जीवनदोरी अब समाप्त होगई । इस गाममें उनका अवसान हुआ, लायक पुत्रोंने उनके अन्त्यसमयकों खूब सुधारा, जिससे उनका मरणभी अच्छा समाधिपूर्वक हुआ। वस्तुपाल तेजपाल मातापिताके वियोगसें सदा उदास रहने लगे, अनेक व्यापारों में लगानेपर भी उनका मन किसीभी काममें न लगने लगा । हरएक स्थानमें, हरएक काममें, हरएक समयमें, मातापिताकी मूर्तिही उनकी आंखोंके सामने फिरने लगी । इस वियोगजन्य दुःखकों जब वह किसीभी तरह न सहन करसके तब लाचार होकर उनकों वह स्थान छोडनेकी जरूरत पडी । वहांसें निकलकर वोह मांडल गाममें जाकर रहने लगे। वहांसी उन्होंने खूब प्रसिद्धि और प्रशंसा प्राप्त की । वहाँके लोग उनकी बडी इज्जत करने लगे, राज्यकार्यों में भी उनका अधिकार बडा अच्छा जमा । सत्यवादमें, न्यायमें, बुद्धिकौशलमें, वह हरिश्चन्द्र, रामचन्द्र, अभयकुमारके अवतार कहलाने लगे, राजदरवारमें उनका सन्मान खूब वढने लगा, देशभरमें उनकी कीर्ति वेगसे फैलने लगी। नीच और ऊंच, १ वीरमगामके पास यह गाम आजकल भी इसीही नामसे प्रसिद्ध है।
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy