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________________ ज्यों था त्यों ठहराया लोबसांग राम्पा की जो किताबें हैं, वे उपन्यास हैं। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। सिर्फ बुद्ध उनसे प्रभावित हो सकते हैं। उपन्यास का मजा लेना हो, तो बात और। और उपन्यास की दृष्टि से भी तृतीय कोटि के उपन्यास हैं। उपन्यास की दृष्टि से बिलकुल आखिरी श्रेणी के हैं। मगर अध्यात्म की तरह समझोगे, तो समझोगे कि बड़ी राज की बातें लोबसांग राम्पा कह रहा है! सब कपोल-कल्पनाएं हैं। सब सपने हैं। मगर कई लोगों को प्रभावित करता है। क्योंकि सपनों से भरे लोग सपनों से ही प्रभावित होते हैं। सपने की ही भाषा जानते हैं। और तो कोई दूसरी भाषा आती नहीं। उपन्यास का मजा लेना हो, तो टालस्टाय को पढ़ो, तो दोस्तोवस्की को पढ़ो। चेखोव को पढ़ो। गोर्की को पढ़ो। उपन्यास का मजा लेना हो, तो महान कलाकार हुए हैं--क्या सड़े-सड़ाए लोबसांग राम्पा को पढ़ रहे हो! जिसमें कुछ भी नहीं--कचरा है। मगर अगर अध्यात्म समझो, तो फिर तुम्हारी मर्जी। फिर प्रभावित हो जाओगे। अध्यात्म के नाम से जितना कूड़ा-करकट दुनिया में चलता है, किसी और चीज के नाम से नहीं चलता। लेकिन चलता क्यों है? क्योंकि लोग उसी भाषा को समझते हैं। लोग मूढ हैं और जो उनकी मूढता को प्रभावित करता है, उन्हें जान लेना चाहिए कि उस बात में भी कुछ छिपी हुई मूढता होगी, तभी तो तालमेल बैठ रहा है। बुद्धपुरुषों की भाषा तो चौंकाती है, झकझोरती है। बुद्धपुरुष तो यूं आते हैं, जैसे कि तलवार आए! यूं कि जैसे कोई गर्दन काट जाए। बुद्धपुरुष तो अग्नि की तरह हैं--आग्नेय होते हैं। भस्मीभूत कर देंगे। निश्चित ही उसको, जो नहीं है। जो है--वह तो निखर कर उभर आएगा। बुद्धपुरुष तो यूं आते हैं, जैसे हवा का झोंका आए। राख को उड़ा ले जाते हैं। मगर तुम राख को पकड़ते हो। तुम समझते हो--यह तुम्हारी संपदा है! दिल को संवार गई जीवन निखार गई जाने कहूं वो क्या है खुशियां बौछार गई! मैं खुद रहा न अपना टूट गया सब सपना कोई हवा इस मन का दरपन बुहार गई! जीवन भया उजयारा खो ही गया अंधियारा प्रेम अग्नि मंदिर में दियरा-सा बार गई! Page 99 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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