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________________ हाथों में उसके छोड़ा तैरा न भागा-दौड़ा नदिया ही देखो मेरी नैया को तार गई ! - हाथों में उसके छोड़ा! संन्यास का अर्थ है- समर्पण मंजु ! छोड़! अब लड़ने की जरूरत नहीं । यह जो गैरिक सरिता है, यह सागर की तरफ जा यह नदी जा ही रही है सागर की तरफ। ही रही है अब तैरने की भी जरूरत नहीं हाथों में उसके छोड़ा भागने दौड़ने की भी जरूरत नहीं। तैरा न भागा-दौड़ा नदिया ही देखो मेरी नैया को तार गई ! जीवन भया उजयारा खो ही गया अंधियारा प्रेम अग्नि मंदिर में दियरा - सा बार गई ! मैं खुद रहा न अपना टूट गया सब सपना कोई हवा इस मन का दरपन बुहार गई ! दिल को संवार गई जीवन निखार गई ज्यों था त्यों ठहराया - कहूं वो क्या है खुशियां बौछार गई ! सिर्फ जाग कर देख लेना। कुछ करना नहीं है। अहमक अहमदाबादी विदा हो जाता है। और तुम जागे रहो -- फिर लौटकर नहीं आ सकता। सोए, तो फिर लौट आएगा। सोए तो फिर सपने। Page 100 of 255 संन्यास की परम अवस्था है: जागे, तो जागे । सोए भी जागे । कृष्ण ने योगी की परिभाषा जो की हैं, वही संन्यासी की मेरी परिभाषा है। कृष्ण ने कहा है-वह जो नींद में भी जागता है। या सर्व भूतायाम तस्याम जाग्रति संयमी । जो सबके लिए रात है--या निशा सर्व भूतायामसंयमी के लिए, योगी के लिए वह भी नींद नहीं वह तब भी जागा है। तस्याम जाग्रति संयमी । शरीर सो जाता है, मन सो जाता है- और भीतर http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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