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________________ ज्यों था त्यों ठहराया अंधेरी रात! इसके लिए क्या इतना उपद्रव करना? और इन सबको मार कर फायदा क्या होगा? राज्य ही मिलेगा! न और मौत आएगी--सब छिन जाएगा! और अपनों को मार कर...। ये सब अपने ही है क्योंकि परिवार का ही झगड़ा था। उस तरफ भी अपने लोग हैं, इस तरफ भी अपने लोग हैं। दोनों तरफ रिश्तेदार ही खड़े हैं। कोई भाई है। कोई चचेरा भाई है। कोई ममेरा भाई है। कोई बहिन के रिश्तेदार हैं। कोई किसी और तरफ से रिश्तेदार हैं। एक ही गुरु के शिष्य हैं ये सब, द्रोणाचार्य के। शिष्य इस तरफ लड़ रहे हैं, द्रोणाचार्य उस तरफ लड़ रहे हैं। कृष्ण इस तरफ खड़े हैं, उनकी फौजें उस तरफ खड़ी हैं! किसको मार रहे हो? क्या फायदा है? लेकिन कृष्ण ने कहा कि अर्जुन, अज्ञान की बातें न कर। आत्मा न तो मरती है, न मारी जा सकती है। न हन्यते हन्यमाने शरीरे। शरीर मरता है--आत्मा तो मरती नहीं। नैनं दहति पावकः नैनं छिंदंति शस्त्राणि--त तो शस्त्र छेद सकते हैं और न आग जला सकती है। तू कैसी अज्ञान की बातें कर रहा है? जी भर कर मार। कोई पाप नहीं है। किसको मानें सच? महावीर कहते हैं--कदम भी सम्हाल-सम्हालकर रखो। कहीं चींटी न मर जाए। आदमी की तो बात छोड़ दो, महावीर के संबंध में कहा जाता है, वे रात करवट नहीं बदलते थे कि रात अंधेरे में करवट बदलें--नंगधडंग तो थे ही, जमीन पर सोते थे, कोई बिस्तर वगैरह तो था नहीं; पलंग वगैरह का उपयोग तो कर नहीं सकते थे--यह सब तो पाप ध्यान रखना, पलंग पर मरे तो नर्क जाओगे। और अकसर लोग पलंग पर ही मरते हैं। कुछ सौभाग्यशाली लोगों को छोड़ कर--जो हवाई जहाज में मर जाते हैं; कि कोई रेलगाड़ी में मर जाते हैं; कोई कार के एक्सिडेंट में मर जाते हैं। कुछ थोड़े से सौभाग्यशाली लोगों को छोड़ दो...। जिसको तुम दुर्घटना कहते हो। और जिसको तुम कहते हो ठीक-ठीक मरना, वह तो खाट पर ही होता है। निन्यानबे प्रतिशत आदमी तो खाट पर ही मरते हैं! खाट से जरा सावधान रहना। मैं जबलपुर बीस साल रहा। वहां एक गाली चलती है, जो और मुल्क में कहीं नहीं चलती। वह गाली है--तेरी खाट खड़ी कर दूंगा! मैं भी बहुत चौंका, जब पहली दफा सुनी--कि खाट खड़ी कर दूंगा--इसका मतलब! उन्होंने कहा, इसका मतलब कि खाट की अर्थी बना देंगे। खाट खड़ी कर देंगे! खाट पर ही लोग मरते हैं। वह मरने की गाली है। वे मरने का अभिशाप दे रहे हैं कि खाट को तेरी अर्थी बना देंगे! जब कोई मरता है, तो कहते हैं, उसकी खाट खड़ी हो गई! वे तो लेट गए; उनकी खाट खड़ी हो गई! वे क्या लेटे--अर्थी उठ गई! महावीर कोई खाट पर नहीं सोते थे। होशियार आदमी रहे होंगे! अरे, खाट पर मरना हो जाता है! ऐसी झंझट ही क्यों लेना। जमीन पर ही सोते। और जमीन पर चींटे-मकोड़े-कीड़ा...! और भारत में क्या-क्या जीव-जंतु पलते हैं। जब तो चौरासी करोड़ योनियों का खयाल आया। Page 74 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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