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________________ ज्यों था त्यों ठहराया सब कुछ प्यारा लगता है यह जग न्यारा लगता है! सन्नाटे में डूबना, हंसना और रोना कभी महावीर को ध्याना, कभी मीरा को गाना वहां तुम्हें पाती हूं मैं, खिलखिलाती हूं मैं सब कुछ प्यारा लगता है । अपना अपना लगता है! भगवान! आपकी कृपा से आज मैं भाग्यवान हूं। हे करुणावान! गुणा! जैसा तुझे हो रहा है, ऐसा ही सभी को हो--ऐसा ही आशीष देता हूं। आज इतना ही। दिनांक १३ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना संन्यास, सत्य और पाखंड पहला प्रश्नः भगवान, जीवन की शुरुआत से सभी को यही शिक्षा मिलती रहती है कि सच बोलो। अच्छे काम करो। हिंसा न करो। पाप न करो। लेकिन हम संन्यासी तो इसी रास्ते पर जाने की कोशिश करते हैं, फिर हमारा विरोध क्यों? इस विरोधाभास को समझाने की कृपा करें। रजनीकांत! मनुष्यजाति आज तक विरोधाभास में ही जी रही है। इस विरोधाभास को ठीक से समझो, तो मुक्त भी हो सकते हो। विरोधाभास यह है कि जो तुम से कहते हैं--सत्य बोलो, वे भी सत्य नहीं बोल रहे हैं। उनका जीवन कुछ और कहता है। उनकी वाणी कुछ और कहती है। उनके व्यक्तित्व में पाखंड है। और बच्चों की नजरें बड़ी साफ होती हैं। बच्चों के पास दृष्टि बड़ी निखरी होती है। होगी ही? ताजी होती है। बच्चे शीघ्र ही देख लेते हैं कि कहना कुछ--करना कुछ! बच्चों से कहा जाता है: ईश्वर में विश्वास करो। एक तरफ कहा जाता है, सत्य से डिगो मत। दूसरी तरफ कहा जाता है, विश्वास करो। विश्वास का अर्थ ही होता है--असत्य। ईश्वर को जाना नहीं--और विश्वास करो! यह तो असत्य का आधार हो गया। यह तो स्रोत हो गया, जहां से बहुत असत्य जन्मेंगे। कौन मां-बाप अपने बच्चों से कहता है, ईश्वर को जानना--तब मानना। हर मां-बाप अपने बच्चों को कहता है, मानो--तो जानोगे। और मानने का अर्थ झूठ होता है। मानने का अर्थ Page 65 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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