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________________ ज्यों था त्यों ठहराया यही धन्यभाग है कि एक दिन आदमी थक जाता है। मन थक जाता है। बैठ रहता है। बुद्ध ने छह वर्ष तक सतत चेष्टा की। किधर किधर न खोजा। मगर किधर - किधर में भटके रहे। फिर जब थक गए और एक सांझ थककर बैठ गए और कहा कि फिजूल है सब खोज। कुछ मिलना नहीं है। न संसार में कुछ है, न मोक्ष में कुछ है। है ही नहीं कुछ। सब व्यर्थ है। स्वभावतः संसार भी देख चुके थे सम्राट का जीवन भी देख चुके थे और छह वर्षों में तपस्वी का योगी का जीवन भी देख लिया। न भोग में कुछ है, न योग में कुछ है। न भोग से मिलना, न योग से मिला है ही नहीं। तो जब है ही नहीं, तो करना क्या! और उसी रात घटना घटी। उस रात गहन विश्राम में सो गए। अब कोई खोज न थी। कुछ पाना न था । विश्राम ही विश्राम था। कोई तनाव न था। कोई चिंता न थी । , सुबह जब उठे, और रात का आखिरी तारा डूबता हुआ देखा। बस, उस तारे को डूबते हुए देखना उसकी आखिरी झिलमिलाहटा यह गया यह गया यह गया। ऐसे ही भीतर अहंकार चला गया। क्योंकि जब कुछ खोज ही न रही, जब कुछ पाने की आकांक्षा न रही, जब कुछ पाने को ही न बचा; जब हार परिपूर्ण हो गई--तो यह गया, यह गया, यह गया ! जैसे तारा डूबता है सुबह-- आखिरी तारा। वह जो थोड़ी बहुत रेख भी रह गई होगी अहंकार की, वह चली गई। उसी क्षण बोध को उपलब्ध हो गए। खोज खोज कर जो न मिला, वह बिन खोजे मिला प्रयास से जो न मिला था, वह विश्राम से मिला। चेष्टा से, श्रम से जो न मिला था, वह विराम से मिला। दौड़ कर जो न मिला था, वह बैठ कर मिला । आपाधापी से न मिला था। किधर किधर न भटके थे! वह इधर मिला! वे जब सब छोड़ कर बैठ गए, तो होगा क्या? जीवन-चेतना, जीवन-ऊर्जा जो सब जगह बिखरी थी, सिमट आई। सब न्यस्त स्वार्थ गिर गए। संसार भी गिर गया। मोक्ष भी गिर गया। कोई आकांक्षा न रही इस संसार की या उस संसार की महत्वाकांक्षा मात्र समाप्त हो गई। तो अब जीवन ऊर्जा कहां भटके ! लौट आई अपने पर बैठ रही भीतर। केंद्र पर समाहित हो गई। किरणें लौट आई सूरज की वापस विस्तार सिकुड़ आया सब केंद्र पर बैठ रहा। वहीं उपलब्धि है। हार में जीत है। आखिरी प्रश्नः भगवान! सांसों की सरगम पे नाचूं मैं छमछम मौजों की लहरों पे बरसूं मैं रिमझिम | गाती हूं मैं गुनगुनाती हूं मैं सब कुछ सुहाना लगता है मधुबन मधुबन लगता है। शाम और सवेरा, दीप और अंधेरा उदासी का मेला, खुशियों का डेरा बहती हूं मैं गुनगुनाती हूं मैं Page 64 of 255 -- " http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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