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________________ ज्यों था त्यों ठहराया होता है--जिसे जाना नहीं उसे मान लेना। जिसे देखा नहीं, उसे मान लेना। जिसकी कोई प्रतीति नहीं--उसे मान लेना। अंधा आदमी प्रकाश को मानता है--जानता नहीं। आंख वाला जानता है; मानने की जरूरत नहीं। आंखें तो नहीं दी जाती--विश्वास दिया जाता है। और साथ ही शिक्षा चल रही है कि सत्य का अनुसरण करो। सत्य ही परमात्मा है। यह भी वे ही लोग कह रहे हैं, जो कहते हैं कि परमात्मा में विश्वास करो। और विश्वास अर्थात झूठ। श्रद्धा तो अनुभव से पैदा होती है। विश्वास अज्ञान को छिपाने की चेष्टा है। विश्वास बहुत सस्ता है, उधार है, बासा है। ये विश्वासियों की जमातों से तो जमीन भरी है। कोई हिंदू, कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई जैन--ये सब विश्वासी हैं। सब अंधे। किसी ने देखा नहीं। किसी ने जाना नहीं। जो तुम्हें समझा रहे हैं, उन्होंने भी नहीं देखा, उन्होंने भी नहीं जाना, वे भी झूठ बोल रहे हैं। मगर इस ढंग से बोल रहे हैं कि जैसे जाना हो। इस बल से बोल रहे हैं, जैसे यह उनका आत्म-साक्षात्कार हो। बेझिझक बोल रहे हैं! बाप बेटे से कहता है, सच बोलो। लेकिन बेटा देखता है कि बाप जीता तो झूठ है! कभी इसी बेटे को कह कर भेज देता है; द्वार पर कोई खड़ा है--कि कह दो कि पिताजी घर में नहीं हैं? बेटा देखता है कि मामला क्या है? सच बोलूं, कि पिता जो कहते हैं, वह मानूं? यह भी सिखाया जा रहा है--आज्ञाकारी रहो। आज्ञा मानो। और यह भी सिखाया जा रहा है-- सच बोलो। पर सवाल यह है कि कभी आज्ञा और सत्य विपरीत हो सकते हैं। फिर क्या करें? कभी आज्ञा ऐसी हो सकती है कि अगर मानें, तो झूठ होता है; सत्य का खंडन होता है। और अगर सत्य बोलें, तो आज्ञाकारिता नष्ट होती है। दुविधा खड़ी हो जाती है। बच्चे को तुम उलझा रहे हो, सुलझा नहीं रहे हो। कहते तो होः हिंसा न करो। और बच्चा देखता है--तुम्हारे जीवन में हिंसा ही हिंसा है! तुम्हारी सारी कठोरता--उससे छिपाई नहीं जा सकती। माना कि तुम पानी छान कर पीते होओगे। पानी छान कर पीने में क्या हर्जा है! लाभ ही लाभ है। स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। हल्दी लगे न फिटकरी, रंग चोखा हो जाए! पानी छान कर पी लिया--और खून बिना छाने पी जाते हो! जैनों की शिक्षा है--अहिंसा परमोधर्मः। और जितना शोषण जैन कर सकते हैं, कोई दूसरा नहीं कर सकता। तुमने जैन भिखारी देखा? और सब तरह के भिखारी देखे होंगे--हिंदू, मुसलमान। लेकिन तुमने जैन भिखारी देखा? जैन भिखारी होता ही नहीं। जैनों की संख्या कितनी है भारत में? कुल पैंतीस लाख। सत्तर करोड़ लोगों में पैंतीस लाख कोई संख्या है! सागर में बूंद। लेकिन फिर भी जैन दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि धन है। धन कहां से आता है? धन कैसे आता है? कोई जैसे उत्पादन तो करते नहीं। ब्याज खा सकते हैं। पानी छान कर पी लेते हैं। खूब बिना छाने पी जाते हैं! बेटा यह देखता है।... Page 66 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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