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________________ किरण! तुमने बात तो प्यारी पूछी यह गर्व भरा मस्तक मेरा ज्यों था त्यों ठहराया प्रभु चरण धूल तक झुकने दे। मगर कहीं शर्त लगा रखी है। उतनी शर्त भी नहीं झुकने देगी। तुम कहते हो, मैं प्रेमी इतना न झुका इतना झुकने में भी शर्त लगाओगे? फिर चूक हो जाएगी। गिर भी जो पडूं तो उठने दे। उठने की बात ही छोड़ो। गिरे तो गिरे। फिर उठना क्या । झुके तो झुके। फिर उठना क्या ! फिर बार- बार क्या उठना । डूबे तो डूबे। फिर निकलना क्या! हारो । अब हारो समर्पण संन्यास है। वीणा! अच्छा हुआ कहती है तू, पाया न देख बैठी थक कर तुम गए जीत मैं गई हार बस, पहला कदम उठा। और पहला कदम ही कठिन है। फिर तो सब आसान हो जाता है। परवाने की भाषा समझनी होती है संन्यासी को, शिष्य को । गर्म एक शम्मा का अफसाना सुनाने वालो रस्क देखा नहीं तुमने अभी परवाने का , जब नाचता है परवाना शमा के चारों तरफ देखी उसकी मौज ! देखी उसकी मस्ती ! ऐसा नहीं कहता, इतना न जला, मैं प्रेमी हूं। जल ही जाता है। पूरा ही जल जाता है। दग्ध हो जाता है। किसको मालूम थी पहले से खिरद की कीमत आलमे होश पे अहसान है दीवाने का यह जो परम सत्य है, किसको इसकी कीमत मालूम है? पहले से कीमत मालूम होती, तो समझदार भी खरीद लेते। मगर इसकी कोई कीमत नहीं है। कीमत की भाषा में यह आ नहीं है। नहीं तो सब समझदार, तथाकथित चालबाज, होशियार, तर्कशास्त्री, गणितज्ञ सत्य को पा लेते। किसको मालूम थी पहले से खिरद की कीमत आलमे होश पे अहसान है दीवाने का " वह तो दीवानों ने बिना कीमत पूछे बिना फिक्र किए कि क्या होगा परिणाम क्या होगा अंजाम--कूद पड़े आग में जल गए और पा लिया। मिट गए और पा लिया ! इसलिए जो तथाकथित समझदार हैं, उन पर बड़ा अहसान है दीवानों का । पहला कदम है समर्पण और दूसरा कदम है उपलब्धि । दो कदम में यात्रा पूरी हो जाती है। या यूं कहो: एक ही सिक्के के दो पहलू हैं--समर्पण और उपलब्धि । इधर खोया- -इधर पाया। क्षण की भी देर नहीं होती। वीणा ! उठ मत आना । थककर बैठ गई, अब फिर इधर-उधर मत देखने लगना । फिर किधर - किधर न भटकने लगना । यह उपलब्धि कुछ ऐसी नहीं है, जो प्रयास से होती है। यह हार से होती है जब तक प्रयास है, तब तक अहंकार है जब तक चेष्टा है, तब तक मन है। Page 63 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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