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________________ ज्यों था त्यों ठहराया मैं प्रेमी हूं, इतना न झुका देखते हैं! मैं प्रेमी हूं, इतना न झुका गिर भी जो पडूं तो उठने दे यह गर्व भरा मस्तक मेरा प्रभु चरण-धूल तक झुकने दे। बात प्यारी कही। फूल ही फूल हैं। मगर एक कांटा भी आ गया। और वह कांटा पर्याप्त है बाधा के लिए। जरा-सा, इंच भर का फासला पर्याप्त है। शायद किरण ने जब यह प्रश्न लिखा, तो सोचा भी नहीं होगा कि मैं प्रेमी हूं, इतना न झुका! उसमें भी शर्त है कि इतना मत झुकाओ; इतना मत मिटाओ। कुछ तो बचने दो! मैं प्रेमी हूं, कुछ तो बचने दो! बिलकुल न डुबाओ। कम से कम सिर तो बचने दो। गले तक डुबाओ, आकंठ डुबाओ। मगर सिर तो मेरा बचने दो! मैं प्रेमी हूं, इतना न झुका। गिर भी जो पडूं तो उठने दे। और अगर गिर जाऊं तो कम से कम उठने तो दो। फिर-फिर उठ आता है मन। फिर-फिर उठ आता है अहंकार। झुक-झुक कर उठ आता है! अहंकार के रास्ते बड़े सूक्ष्म हैं। इधर से जाता है, उधर से आ जाता है। बाहर के दरवाजे से निकाल कर फेंक दो, वह पीछे के दरवाजे से लौट आता है। दरवाजे से न आने दो, खिड़कियों से आ जाता है। खिड़कियों से न आने दो, रंधों से आ जाएगा। कहीं न कहीं से रास्ता खोज लेगा। जरा-सी भी रंध्र मिल जाएगी, खपड़ों में जरा-सी संध मिल जाएगी--वह जो चाबी के लिए ताले में छेद होता है, उतना भी पर्याप्त है। उतने में से ही सरक आएगा। बड़ा सूक्ष्म है! नसरुद्दीन को एक शराब घर में शराबघर के मालिक को भी इतनी दया आ गई कि उसने धक्के दे कर निकाल दिया--इतना पी गया था, और फिर भी मांग रहा था। जाता ही न था। और दो--और दो। मांग चुकती ही न थी। मन मानता ही नहीं। और--और। शराबघर के मालिक तक को दया आ गई। उसकी तो शराब बिकती थी। मगर उसको भी दया आ गई कि अब यह इतनी पी चुका है कि घर भी न पहुंच सकेगा। धक्के दे कर बाहर निकाल दिया। वह दूसरे दरवाजे से भीतर आ गया। शराबघर के कई दरवाजे थे। वह दूसरे दरवाजे से भीतर आ गया और फिर उसने आ कर मांग की। मालिक ने उसे फिर धक्के दे कर निकाला! वह तीसरे दरवाजे से भीतर आ गया। उसे फिर धक्के दे कर निकाला! वह पीछे के दरवाजे से आ गया! और जब उसे धक्का दिया जाने लगा, तो वह बोला कि मामला क्या है! क्या तुमने गांव भर के सभी शराबखाने खरीद लिए हैं? जिस शराबघर में जाता हूं, वहीं से धक्के दे कर निकालते हो। तुम ही सभी जगह बैठे मिल जाते हो! मामला क्या है? वह सोच रहा है-- अलग-अलग शराबघरों में जा रहा है। बेहोश! दरवाजे बदल लेता है। मगर बात वही हो कर रहेगी। वही मिलेगा भीतर। Page 62 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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