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________________ ज्यों था त्यों ठहराया कि एक सज्जन यहां सतपाल महाराज जमे हुए हैं। वे सक्रिय-ध्यान करवा रहे हैं और नाम आपका लेते नहीं! और लोग समझ रहे हैं कि सक्रिय-ध्यान इनकी खोज है! मराठी में इसी तरह के एक तोताराम पंडित ने, शांताराम वी. थाते ने अभी-अभी एक किताब लिखी है अष्टावक्र गीता पर। उसमें अष्टावक्र गीता पर मेरा जो पहला प्रवचन है, पूरा का पूरा, शब्दशः एक मात्रा भी नहीं छोड़ी। पूरा का पूरा प्रवचन चुरा लिया है। उसकी भूमिका बना कर दे दी! नाम का उल्लेख नहीं है! और उनकी पुस्तक की मराठी पत्रों में बड़ी प्रशंसा की जा रही है कि अष्टावक्र गीता पर ऐसी कोई किताब नहीं लिखी गई! लक्ष्मी ने उन्हें रजिस्टर्ड पोस्ट से पत्र लिखा कि आप जवाब दें--उसका भी डेढ़ महीना हो गया, कोई जवाब नहीं है! चोर! हर तरह के चोर! करपात्री महाराज हिंदुओं के बड़े संत हैं। उन्होंने मेरी पुस्तक संभोग से समाधि की ओर-- उसके खिलाफ एक पूरी किताब लिखी है। मेरे एक भी तर्क का जवाब नहीं है। शास्त्रों से उल्लेख है, और मुझसे पूछा है कि शास्त्रों में मेरी बात का समर्थन कहां है? मैं कब कहता हूं कि शास्त्रों में मेरी बात का समर्थन होना चाहिए! शास्त्रों ने कोई ठेका लिया है? सत्य चुक गया शास्त्रों में! शास्त्रों में नहीं है उल्लेख मेरी बात का, इससे इतना ही सिद्ध होता है कि जो मैं कह रहा हूं, वह मौलिक है। क्योंकि हो शास्त्रों में उल्लेख? और तो कोई तर्क नहीं, बस, शास्त्रों का ही उल्लेख किया हुआ है कि इस शास्त्र में भी नहीं। इस शास्त्र में भी नहीं। इस शास्त्र में भी नहीं। और शास्त्रों में मेरे विपरीत उनको जो-जो वचन मिल गए हैं, वे सब उल्लेख कर दिए हैं। मेरे पास किताब पहुंचाई है कि मैं इसका जवाब दूं। मैं जवाब क्या दूं! मेरी संन्यासिनी है--प्रज्ञा--उससे पूछो जवाब! वह संन्यासिनी नहीं थी, तब अहमदाबाद में करपात्री महाराज आए थे, तो वह दर्शन करने चली गई। एकांत पा कर बस, उन्होंने फिर अवसर नहीं खोया। एकदम से उसके स्तन पकड़ लिए! यह जवाब देगी--मैं क्या जवाब दूं! प्रज्ञा जवाब दे सकती है। वह इतनी घबड़ा गई...! तब तो उसकी उम्र भी कम थी। इतनी बेचैन हो गई कि रोती हुई अपनी मां के पास आ कर कहा कि क्या करना! मां-पिता भी घबड़ाए कि अब इतने बड़े संत के लिए क्या कहना! बूढे हैं, सत्तर साल के हैं और अभी भी यह खुजलाहट नहीं गई! संभोग से समाधि की ओर मेरी किताब को जवाब दे रहे हैं! अब मैं इनको क्या जवाब दूं? थोथे लोग! मगर तुम किस-किस को संत कहते हो, कहना बड़ा मुश्किल है। कोई चरखा चला रहा है, तो संत? महात्मा? तुम्हारी धारणाओं के अनुकूल हो जाना चाहिए, बस। और तुम्हारी धारणाएं तुम्हारी धारणाएं हैं--अज्ञान में पकड़ी गईं। अब यह संत सफियान संत तो नहीं है। संत को क्या जरूरत है कि किसी से पूछे जा कर कि कोई सीख दें! उसे तो मिल गया सब। जिसे मिल गया, वही तो संत है। राबिया ने सीख दे दी। राबिया ने कहा, यह लो मोमबत्ती। राबिया ने इतना कहा कि दूसरों की रोशनी से कब तक जीओगे! अरे, अपनी मोमबत्ती जला लो। वह दूसरों के सूरज से ज्यादा बेहतर है। अपनी है। उसने साफ कह दिया कि तुम पंडित हो--थोथे पंडित। तुम्हें कुछ Page 50 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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