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________________ ज्यों था त्यों ठहराया पता नहीं अभी और संत बने बैठे हो? और लोग तुम्हें संत की तरह पूजते हैं, तो इनकार भी नहीं करते। अभी भीतर का दीया जला भी नहीं। यूं सचोट उत्तर दिया! मैं नहीं समझता कि सफियान समझ पाए होंगे। मोमबत्ती ले कर उन्होंने भी देखा होगा कि बात क्या है? मोमबत्ती में कोई राज तो नहीं? उलट-पलट कर देखा होगा। कुछ लिखावट तो नहीं? उनकी भी बुद्धि में आया होगा, यह मैं मानता नहीं। आ गया होता, तो वे कह गए होते। तो सूफियों को फिर सोचने-विचारने की जरूरत न रह जाती। और अब्दुल वहीद दार्शनिक रहे होंगे, तर्क-शास्त्री रहे होंगे, इसलिए उनको एक सुई थाम दी। सुई बड़ी प्रतीकात्मक है। राबिया के अपने बोलने के अनूठे ढंग थे। कहने के अपने इशारे थे। उसका एक-एक इशारा कीमती है। इस संबंध में एक संत फकीर फरीद के जीवन में उल्लेख है, वह खयाल में लो, तो सुई की बात समझ में आ जाएगी। एक सम्राट फरीद को मिलने गया। सोचा, कुछ ले चलूं भेंट के लिए। क्या ले चलूं! किसी ने उसे सोने की एक कैंची हीरे-जवाहरातों से जड़ी हुई उसी दिन भेंट की थी। बड़ी सुंदर थी। बड़ी कलात्मक थी। उसने सोचा--यही ले चलूं। और उसने यह भी सुना था कि फरीद अकसर कपड़े सीते रहते हैं; गरीबों के कपड़े सीते रहते हैं। तो उनके काम भी आ जाएगी। सो वह कैंची लेकर फरीद के चरणों में गया। सिर झुकाया। कैंची फरीद को भेंट की। फरीद ने कहा, धन्यवाद! लेकिन कैंची मेरे क्या काम की? कैंची तो तुम ले जाओ। मेरा काम कैंची का नहीं है--सुई का है! सम्राट ने कहा, मैं समझा नहीं! फरीद ने कहा, मैं काटता नहीं-- जोड़ता हूं। तर्क काटता है। तर्क कैंची है। सुई जोड़ती है--सुई प्रेम है। तुम पूछते हो दिनेश-भारती, कि क्या है राज राबिया के इस अदभुत उत्तर का? अब्दुल वहीद आमरी तर्क-शास्त्री थे, निश्चित रहे होंगे। सुई प्रतीक है कि मियां, जोड़ो। कब तक काटोगे? काट कर किसने पाया? तर्क करता है विश्लेषण। वह काटता है। संश्लेषण करना तर्क को नहीं आता। तर्क कैंची है। तर्क का काम ही यह है कि चीजों को तोड़े। इसलिए विज्ञान जो तर्क पर आधारित है, आत्मा को नहीं पहचान पाता, न परमात्मा को जान पाता है। कभी नहीं पहचान पाएगा। कभी नहीं जान पाएगा। क्योंकि विज्ञान की सारी प्रक्रिया विश्लेषण है--काटो। आत्मा को जानने के लिए एक ही उपाय है उसके पास--पोस्टमार्टम। आदमी जब मर जाए, तो उसके शरीर को काटो। जिंदा को भी काटोगे, तो मर जाएगा। मेडिकल कालेज में मेंढक काटे जाते, और पशु-पक्षी काटे जाते। काट-काट कर समझने की कोशिश की जाती! निश्चित ही आत्मा हाथ नहीं लगती। क्योंकि जैसे ही तुमने काटा, प्राण उड़ जाते हैं! पिंजड़ा पड़ा रह जाता है; पक्षी उड़ जाता है। तो आत्मा मिले कैसे? यह ऐसा ही पागलपन है, जैसे किसी फूल को तुम ले जाओ किसी वैज्ञानिक के पास और कहो कि यह सुंदर है--बहुत सुंदर है! गुलाब का फूल है! वह कहे, मुझे दो थोड़ा अवसर, मैं Page 51 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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