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________________ ज्यों था त्यों ठहराया टार्जन को जोश चढ़ा। उसने कहा, फिर भारत जाऊंगा! चोट खा गया उसका अहंकार। एक जहाज पर सवार हुआ। टिकिट वगैरह लेने की तो उसे कोई जरूरत थी नहीं। कैप्टेन भी घबड़ाया। पूरे जहाज के यात्री भी घबड़ाए। क्योंकि वह दहाड़ दे, तो प्राण निकल जाए! और जब कैप्टेन उसके पास टिकिट की पूछने के लिए गया, तो उसने सिर्फ छाती खोल कर उसे दिखा दी! उसने कहा कि बिलकुल ठीक है। विराजिए, भोजन इत्यादि करिए। और जो भी सेवा हो--आज्ञा दीजिए। ऐसा खतरनाक आदमी! उतरा, बंबई के बंदरगाह पर। और जब उसने सुना कि नाम बंदरगाह है, घबड़ाया कि है बंदरों का देश! किसके पूर्छ? कि तभी उसे दिखाई पड़ा कि चौपाटी पर मुनि थोथूमल चले जा रहे हैं--मुंह पर पट्टी बांधे हुए, हाथ में पिच्छी लिए हए! उसने सोचा कि यह अजीब किस्म का बंदर है! सुना था--ठीक ही सुना था--कि लंगूर एक से एक अदभुत भारत में हैं। अरे, पूंछ पीछे नहीं लगाई है, बगल में दबाए हुए हैं! अलग ही है पूंछ। बंदर बहुत देखे थे, मगर यूं पूंछ (पिच्छी) बगल में दबाए हुए बंदर उसने नहीं देखा था। और मुंह पर पता नहीं क्यों पट्टी बांधे हुए है! डरते-डरते उसने सोचा कि अपनी पुरानी तरकीब आजमायी जाए, जो वह अफ्रीका के जंगलों में आजमाता रहा था। कमीज खोल कर उसने अपनी छाती दिखाई: भुजाएं फड़काई; और कहा कि मैं टार्जन हं। मुनि थोथमल ने भी अपनी मुंहपट्टी निकाली और कहा कि मैं मुनि थोथूमल हूं! उसने बंदर बहुत देखे थे, लेकिन बोलने वाला बंदर नहीं देखा था। कहते हैं, टार्जन उसी समय समुद्र में कूद पड़ा। वह पहला आदमी है, जिसने तैर कर भारत से अफ्रीका का सागर पार किया, चौबीस घंटे में! फिर उसने पीछे लौट कर भी नहीं देखा कि यहां टिकना ठीक नहीं, जहां बंदर बोलते हैं! और अभी तो यह पहला ही बंदर है। अभी जंगल में पहुंचे ही नहीं हैं। बस्तियों में घूमते बंदर जहां बोल रहे हैं, वहां जंगलों में क्या हालत होगी? कहते हैं, टार्जन अकेला आदमी है पूरे इतिहास में, जिसने चौबीस घंटे के भीतर...। घबड़ाहट देखते हो उसकी! भारत से अफ्रीका तक का समुद्र पार कर लिया। अरे, प्राण संकट में हों, तो आदमी क्या न कर ले! संत तुम किस-किस को कहते हो? कैसे-कैसे थोथे लोग, कैसे-कैसे झूठे लोग, कैसे-कैसे नकली लोग! अकसर तो शास्त्रों को दोहराने वाले जो तोते हैं, उनको तुम संत कह देते हो! ये सब चोर हैं। ये बेईमान हैं। जो इनका नहीं है, ये उसे अपना बता कर कहते रहते हैं! कल किसी मित्र ने पूछा था कि वह गुरु महाराज जी के बड़े भाई सतपाल जी महाराज को सुनने गया था। वह चकित हुआ कि वे मेरी किताबों में से पन्नों के पन्ने दोहरा रहे हैं! फिर उसने उनका साहित्य देखा, तो और भी हैरान हुआ कि वहां तो पन्ने के पन्ने कहानियां, लतीफे--सब वैसे के वैसे। उनमें एक शब्द भी नहीं बदला है। तो उसने पूछा है कि यह मामला क्या है? और अब ये सतपाल महाराज इतना ही नहीं कर रहे हैं। अब वे लंदन में जमे हुए हैं और सक्रिय-ध्यान करवाने में सक्रिय हैं! यह लंदन से संन्यासियों ने खबर दी है Page 49 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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