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________________ ज्यों था त्यों ठहराया यहां हम झूठों में पाले जा रहे हैं; उधार धारणाएं हम पर थोपी जा रही हैं और हम उनको ही ढो रहे हैं। आंखें अंधी हो गई हैं धारणाओं में। हृदय बंद हो गए हैं। कुछ सूझ-बूझ नहीं। कुछ होश-हवास नहीं। इन छह ही बातों में इतनी विपरीतताएं हैं, इतने विरोधाभास हैं कि कोई एक व्यक्ति इतनी बातों एक साथ कह सकता है, तो निश्चित ही विक्षिप्त होने का प्रमाण देता है। / ही चाहता हूं तुमसे कि तुम सारे पक्षपातों से मुक्त हो जाना। मेरी बातें को भी मत पकड़ना, क्योंकि मेरी बातें पकड़ोगे, तो वे पक्षपात बन जाएंगी। बातें ही मत पकड़ना। तुम्हें निर्विचार होना है। तुम्हें मौन होना है। तुम्हें शून्य होना है। तभी तुम्हारे भीतर ध्यान का फूल खिलेगा। और ध्यान का फूल खिल जाए तो अमृत तुम्हारा है, परमात्मा तुम्हारा है। एस धम्मो सनंतनो! और ध्यान का फूल खिल जाए, तो रज्जब की बात तुम्हें समझ में आ जाएगी: ज्यूं था त्यूं ठहराया! तुम वहीं ठहर जाओगे, तो तुम्हारा स्वभाव है। स्वभाव में थिर हो जाना इस जगत में सबसे बड़ी उपलब्धि है। आज इतना ही। दसवां प्रवचन; दिनांक 20 सितंबर, 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना Page 255 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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