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________________ ज्यों था त्यों ठहराया पहला मित्र बोला, तंग जूता पहनने से जो कष्ट होता है, उससे दूसरे सभी कष्ट भूल जाते हैं! एक से एक मजेदार लोग हैं। एक से एक उनकी तरकीबें हैं! तंग जूता पहने हुए हैं, और कष्ट भूल ही जाएंगे। तंग जूते का कष्ट इतना है कि अब और कष्ट क्या याद रहेंगे! चल रहे हैं घसिट कर, लंगड़ रहे हैं! लोग दुखों को भी पकड़े बैठे हैं, झूठों को भी पकड़े बैठे हैं! और इतनी बातें उन्होंने कहीं और उन्हें जरा भी संकोच न आया कि क्या वे कह रहे हैं! शायद सोच-विचार भी न उठा होगा। चंद्रकांत भारती ने ठीक किया कि मुझे ये सारी बातें लिख कर भेज दीं। ये सारे लोग झुठों में पले हैं। इनके पास अपना कोई जीवंत अनुभव नहीं है। सब उधार है, सब बासा है। तोतों की तरह हैं ये लोग। ये दोहरा रहे हैं गीता, कुरान, बाइबिल। मगर अपना कोई अनुभव नहीं है। और जब तक सत्य स्वयं का अनुभव नहीं हो, तब तक सत्य सत्य नहीं होता। मगर अपने झूठ पर भी अहंकार आरोपित हो जाता है। हमारे झूठ को भी कोई तोड़ दे, तो हमें पीड़ा होती है--हमारा जो था! और हमारे सारे चारों तरफ के वातावरण से हमें झूठ ही सिखाया जाता है। एक वकील साहब ने अपने पुत्र को काबिल वकील बनाने का निश्चय किया था, इसलिए उसे बचपन से ही झूठ बोलना सिखा रहे थे। एक दिन पुत्र की परीक्षा लेने के लिए वकील साहब ने कहा, बेटा, अगर तुम मेरी बात खतम होते ही फौरन कोई शानदार झूठ बोलकर दिखाओ, तो मैं तुम्हें दस रुपए दूंगा। अभी तो आप पंद्रह रुपया इनाम देने को कह रहे थे--पुत्र तुरंत बोला। देखा, सीख गया! मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को राजनीति का पाठ पढ़ा रहा था, उससे कहा, बेटा, सीढ़ी पर चढ़ जा। बेटा सीढ़ी पर चढ़ गया--आज्ञाकारी बेटा! और मुल्ला ने कहा, अब तू बेटा, कूद पड़। मैं तुझे सम्हाल लूंगा। बेटा थोड़ा डरा कि कहीं चूक जाए। ऊंची सीढ़ी। कहीं बाप के हाथ से नीचे गिर जाएं, हाथपैर टूट जाएं! मुल्ला ने कहा, बेफिक्र रह। अरे, अपने बाप पर भरोसा नहीं? कूद पड़! थोड़ा झिझका, सकुचाया। मुल्ला ने फिर उसे उत्साह दिलाया, सो वह कूद पड़ा। और जब वह कूदा, तो मुल्ला दो कदम पीछे हट कर खड़ा हो गया! धड़ाम से नीचे गिरा। सिर फूट गया दीवाल से; पैर छिल गया; रोने लगा। मुल्ला ने कहा, चुप! उसने कहा, आप हट क्यों गए? मुल्ला ने कहा कि अब तू याद रख--इस जिंदगी में अपने बाप का भी भरोसा ठीक नहीं। यह पाठ तुझे पढ़ाया है बेटा! मुल्ला राजनीतिज्ञ है, अपने बेटे को राजनीति सिखा रहा है--यहां अपने बाप का भी भरोसा ठीक नहीं! ऐसा उसने नगद पाठ पढ़ाया। Page 254 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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