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________________ ज्यों था त्यों ठहराया यहां मेरे संन्यासी मुझसे कहते हैं कि समय कैसे गुजर जा रहा है, पता नहीं चलता! ऐसा भागा जा रहा है!--मस्ती के कारण। दुख में समय लंबा मालूम पड़ता है, मौज में समय छोटा हो जाता है। आठ सितंबर को विवेक मुझसे कहने लगी, एक वर्ष हो गया! भरोसा नहीं आता कि आपके पिता के महापरिनिर्वाण को एक वर्ष हो गया! ऐसा लगता है यूं, अभी, कुछ ही दिन पहले तो हमने उन्हें विदा दी थी--और फिर आठ सितंबर का दिन आ गया। इतने जल्दी! दिन यूं भागे जाते हैं! अगर तुम मस्त हो, तो दिन भागे जाते हैं। समय का पता नहीं चलता। और अगर तुम दुख में हो, तो समय ठहर-ठहर कर, अटक-अटक कर चलता है। समय बूढे आदमी की तरह लकड़ी टेक कर चलने लगता है। रुक-रुक जाता है। पैसेंजर गाड़ी की तरह चलता है। मेरे एक मित्र थे रेखचंद्र पारेख; अभी कुछ दिन पहले विदा हो गए। उनको पैसेंजर गाड़ी से चलने का बहुत शौक था। मैंने उनको कई दफा कहा कि यह क्या पागलपन है! उन्होंने कहा, एक बार मेरी भी मानो। तो एक बार उनकी मान कर मैं पैसेंजर गाड़ी से यात्रा किया। और सच में ही मैंने पाया कि वे कहते थे, उसमें भी राज था। जहां हम हवाई जहाज से एक घंटे में पहुंच सकते थे, वहां पहुंचने में चार दिन लगे! मगर उनकी बात भी मुझे समझ में आई कि उनकी बात भी ठीक थी। हर स्टेशन पर गाड़ी का रुकना। घंटों रुकना। हर स्टेशन पर उनके जाने-पहचाने लोग थे। परिचित थे। कुली-कुली उनको पहचानता था! स्टेशन मास्टर उनको पहचानता। टिकिट कलेक्टर उनको पहचानता। होटल वाला उनको पहचानता! जहां गए, वहीं स्वागत था। और उनको पता था एक-एक जगह का--कि कहां भजिए अच्छे। कहां दूध अच्छा। कहां की चाय अच्छी। कहां की कचौड़ियां अच्छी। उनको एक-एक चीज का पता था। एक स्टेशन पर गाड़ी खड़ी हुई, वे मुझसे बोले, जल्दी आओ। स्टेशन के बाहर ले गए! मैंने कहा, कहां ले जा रहे हो? गाड़ी चली गई तो क्या होगा? उन्होंने कहा, तुम फिक्र मत करो! बाहर बहुत से आमों के वृक्ष थे। आम का एक झुंड का झुंड खड़ा था। और आम पक गए थे। उन्होंने कहा, आम का समय है। और इस स्टेशन से तो मैं कभी जाता ही नहीं जबकि पके आम का मौसम होता है। तो कुछ आम तोड़ लें। मैंने कहा, हद्द हो गई! अब ये आमों पर चढ़ना पड़ेगा। इस बीच अगर गाड़ी छूट गई...! उन्होंने कहा, तुम फिक्र मत करो। यहां गाड़ी रुकेगी। जब हम ऊपर चढ़े तो एक आदमी हम से भी पहले उस पर चढ़ा हुआ था। उन दोनों ने नमस्कार भी किया और गपशप भी की। मैंने कहा कि अब उतर चलें अपन! उन्होंने कहा, तुम बिलकुल फिक्र ही मत करो। जब तक यह आदमी इस पर सवार है झाड़ पर, गाड़ी चलने वाली नहीं। मैंने कहा, यह है कौन? उन्होंने कहा, यह ड्राइवर है! इसी के पीछे-पीछे मैं आता । गाड़ी चलेगी कैसे? फिक्र ही मत करो। Page 17 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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