SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया डूबता यह नहीं देखता कि जो नाव मुझे बचाने को आई है, उसका माझी कौन है? हिंदू है, कि मुसलमान ? ईसाई है कि सिक्ख ? यह भी नहीं पूछता कि आस्तिक है, कि नास्तिक! डूबता ये बातें पूछता है? डूबता यह पूछेगा कि तुम कौन हो ? तुम जब बीमार होते हो, तो तुम यह नहीं पूछते कि डाक्टर ईसाई है और मैं हिंदू ; कि डाक्टर हिंदू है और मैं जैन- कैसे चिकित्सा करवाऊं ? तुम जब बीमार होते हो, तब तुम फिक्र नहीं करते और तुम बीमार हो आध्यात्मिक रूप से बीमार हो । -- तुम यह फिक्र क्या करते हो! तुम्हें जो चिकित्सक रुच जाए। क्योंकि ध्यान रखना दवा से जिस हाथ पर तुम्हें भरोसा आ जाए, भी ज्यादा मूल्यवान है - चिकित्सक दवा तो गौण है। उस हाथ से राख भी मिल जाए, तो दवा हो जाती है और जिस आदमी पर तुम्हें भरोसा न हो, वह तुम्हें स्वर्ण भस्मी भी दे, मोतियों की भस्मी पिलाए कुछ न होगा राख ही समझो तुम्हारा संदेह तुम्हें खा जाएगा। श्रद्धा जहां जन्म जाए अब्दुल करीम! जहां तुम्हारी श्रद्धा को पंख लग जाए, वहीं से आकाश को खोज लो । -- यह क्या बात पूछनी : किस घाट से उतरना है? घाट अनेक हैं--सागर एक है। किसी घाट से उतरो । इश्के बुतां करूं कि मैं यादे खुदा करूं इस छोटी सी उम्र में, मैं क्या क्या ख़ुदा करूं और बांटा, तो जरूर उम्र बहुत छोटी है। अगर चिंता में पड़े, तो मुश्किल में आ जाओगे। फिर बहुत हैं... पृथ्वी पर तीन हजार धर्म हैं। यह इश्के बुतां और यादे खुदा की ही बात नहीं है। यहां तीन हजार धर्म हैं। तीन हजार धर्मों के कम से कम तीस हजार उप-धर्म हैं! अगर तुम इस चिंता में पड़ गए, तो एक जिंदगी क्या अनेक जिंदगियां छोटी हैं। यही तय न हो पाएगा, कि किस नाव पर बैठना है ! और सब माझी पुकार दे रहे हैं कि आओ, मेरी नाव में । यही नाव पहुंचा सकती है। बस, यही नाव पहुंचाएगी। अब तुम अगर इसी चिंता में पड़ गए कि किस नाव में बैठूं और किस नाव में न बैठूं तो जिंदगी जरूर बहुत छोटी है। चिंता के कारण छोटी है और अगर तुम निश्चिंत हो जाओ, तो यह जिंदगी बहुत बड़ी है एक क्षण भी शाश्वत जितना बड़ा है। अगर तुम निश्चिंत हो, चिंता छूट गई, तो जिंदगी को छोटी कहते हो! तुम्हें समय का अंदाज है--कि समय घड़ी के अनुसार ही नहीं होता; समय तुम्हारे चित्त की दशा के अनुसार ही होता है। एक समय तो बाहर का समय है जो घड़ी बताती है। और एक समय भीतर का समय है। वह भीतर का समय तुम पर निर्भर है। जैसे तुम अपनी प्रेयसी के पास बैठे हो अब्दुल करीम ! वर्षों बाद मिले हो, तो घंटे यूं बीतेंगे, पल बीते इतनी तेजी से भागेंगे! रात गुजर जाएगी और पता न चलेगा। Page 16 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy