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________________ ज्यों था त्यों ठहराया और गाड़ी चलती भी कैसे! ठीक ही था। फिर बेफिक्री से सब ने आम तोड़े। झोलियां भर कर आम लाए। अब ड्राइवर ही चढ़ा हो, तो तुम समझ सकते हो कि चार दिन लगने ही वाले थे। जहां आम भी तोड़ने हों रास्ते में रुक कर, और भजिए भी खाने हों, और चाय भी पीनी हो, और दूध भी लेना हो। और बच्चों के लिए मिठाइयां भी लेनी हों; खिलौने भी उनको मालूम थे कहां मिलते हैं, अच्छे, लकड़ी के। और कहां क्या--वह सारा का सारा...घर आतेआते उन्होंने डब्बे को सामान से भर लिया! मैंने उनको कहा, यह बात तो ठीक है। उन्होंने कहा, अब तुम ही कहो--हवाई हवाई जहाज से जाते, तो यह मजा कहां! और हवाई जहाज से जो आदमी उड़ता है, उन्होंने कहा, उसको जनता कभी क्षमा नहीं करती। मैंने कहा, यह बात भी ठीक है। क्योंकि किसी के ऊपर से उड़ोगे, तो वह क्षमा कैसे करेगा? किसी के सिर पर चढ़ोगे--कैसे क्षमा करेगा? और पैसेंजर गाड़ी में!...मेरे आग्रह से वे फर्स्ट क्लास में चले। नहीं तो वे कहते थे कि मजा थर्ड क्लास में चलने का है। क्योंकि दोस्ती, पहचान, मैत्री, नए-नए संबंध, और एक से एक मजेदार लोग, और उनकी जीवन कथाएं! और जब रहना है चार दिन साथ, तो फिर सभी अपनी-अपनी खोल देते हैं। जो सगे-संबंधियों से लोग नहीं कहते, वह ट्रेन में अपरिचितों से कह जाते हैं। अपनों से कहने में डरते हैं, वह अजनबियों से कह जाते हैं। तो हर आदमी एक कहानी है। हर आदमी एक अनूठी कहानी है। तो वे कहते कि यह क्या फर्स्ट क्लास में चलना! मैंने कहा, तुम इतनी कृपा करो कि थर्ड क्लास में मुझे मत घसीटो। मैं पैसेंजर में आने को राजी हो गया, इतना ही बहत। तुम मुझे फर्स्ट क्लास में तो कम से कम चलने दो! मगर वे बीच-बीच में जाते रहे मिलने लोगों से; थर्ड क्लास में बैठते रहे! उनको चैन न पड़े। भीड़भाड़! लोगों की रुचियां भिन्न हैं। रुचियों को ध्यान में रखो और तुम्हारी रुचि जिस बात से जुड़ जाए, वहां समय एकदम भिन्न हो जाता है। समय की धारा बदल जाती है। एक मजे की बात है, जो तुमने शायद खयाल में न ली हो। समय के संबंध में एक विरोधाभास है। जब सुख के क्षण होते हैं, तो जल्दी जाते हैं। लेकिन दुख के क्षण धीरे-धीरे जाते हैं। और बाद में जब तुम याद करोगे, तो तुम चकित होओगे। बाद में स्थिति बिलकुल उलट जाती है। जब तुम याद करोगे, तब सुख के क्षण लंबे मालूम होंगे, और दुख के क्षण जल्दी बीत जाएंगे। क्योंकि दुख को हम स्वीकारते नहीं, अंगीकार नहीं करते। कर नहीं सकते। वह हमारे स्वभाव के प्रतिकूल है। फूलों को हम संजो लेते हैं; कांटों को हम छोड़ देते तो जब तुम बाद में याद करोगे, तो तुम कहोगे, अहा, प्यारा बचपन! क्या थे दिन! जब तुम बुढ़ापे में जवानी याद करोगे, तो कहोगे, अहा! क्या थे दिन! इधर हुई शाम, उधर हाथ में जाम! क्या थे दिन! हालांकि जवान आदमी अपनी मुसीबतें जानता है। जवानी में उसको मुसीबतें दिखाई पड़ती हैं। बुढ़ापे में मुसीबतें भूल जाती हैं। Page 18 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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