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________________ ज्यों था त्यों ठहराया सरदार वल्लभभाई पटेल को भी खबर थी और वे भारत के गृहमंत्री थे। उनके हाथ में सारी व्यवस्था थी। और उन्होंने जा कर महात्मा गांधी को पूछा! अब होशियारियां देखना। उन्होंने महात्मा गांधी को पूछा कि क्या हम आपकी सुरक्षा की व्यवस्था करें? निश्चित वे जानते थे कि महात्मा गांधी क्या कहेंगे। महात्मा गांधी ने कहा कि जब परमात्मा मुझे उठाना चाहेगा, तो कोई व्यवस्था मुझे रोक न सकेगी। और जब तक नहीं उठाना चाहता, तब तक कोई मुझे उठा नहीं सकता है। इसलिए व्यवस्था की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें लगेगा कि यह बात तो बड़ी कीमत की महात्मा गांधी ने कही। मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ कीमत की बात है। जरा भी कीमत की बात नहीं है। क्योंकि अगर गोडसे के द्वारा परमात्मा तुम्हें मारना चाहता है, तो सरदार वल्लभ भाई पटेल के द्वारा सुरक्षा करवाना चाहता है! तुम बीच में आने वाले कौन हो? अगर सच्चा धार्मिक व्यक्ति हो, तो वह कहेगा कि तुम्हारी जो मर्जी। मारने वाले को मारने से मैं नहीं रोक सकता। बचाने वाले को मैं रोकने वाला कौन हूँ! लेकिन बेईमानी देखते हैं। इसमें कुछ धार्मिकता नहीं है। कोई ध्यान का बोध नहीं है। हालांकि तुम्हें यह बात बहुत प्रभावित करेगी। बहुतों को प्रभावित करती है कि अहा! यह है धार्मिक व्यक्ति! कहता है, ईश्वर उठाना चाहता है, तो कोई रोक नहीं सकता। और ईश्वर रोकना चाहता है, तो तुम क्यों रोक रहे हो? आखिर किसी के द्वारा ही उठाएगा ईश्वर भी। नाथूराम गोडसे के द्वारा उठवाया। तो किसी के द्वारा ही बचाएगा! मुझसे लोग पूछते हैं कि आप सुरक्षा का इंतजाम बंद क्यों नहीं करवा देते? मैं कौन हूं बंद करवाने वाला! जब मैं छुरे फेंकने वाले को नहीं रोक सकता, तो संत महाराज को कैसे रोकू? जो जिसकी मर्जी हो--करो। छुरा फेंकने वाला छुरा फेंके, रोकने वाला रोके। मैं खेल देख रहा हूं। इससे ज्यादा मेरा प्रयोजन नहीं है। संत को तो रोकू--और छुरा फेंकने वाले को तो रोक नहीं सकता--तो यह तो छुरा फेंकने वाले को मेरा साथ हुआ। यह तो किसी न किसी रूप में आत्महत्या की वृत्ति हुई! मगर आत्महत्या की वृत्ति भी आदमी बहुत अच्छे आवरण में रख सकता है। महात्मा गांधी को लगने लगा था कि वे खोटे सिक्के हो गए हैं। क्योंकि जैसे ही सत्ता उनके शिष्यों के हाथ में गई, उन्होंने महात्मा गांधी की सुनना बंद कर दिया था। उन्होंने कहा, जब तक देश को आजादी नहीं मिली थी, वे मेरी सुनते थे। अब मेरी कोई नहीं सुनता। मैं खोटा सिक्का हो गया हूं! और मरने के कुछ दिन पहले उन्होंने यह कहा था कि पहले मैं एक सौ पच्चीस वर्ष जीना चाहता था, अब नहीं। अब मेरी कोई जरूरत ही नहीं है। मेरी कोई सुनता नहीं। मेरी कोई मानता नहीं। मैं बिलकुल व्यर्थ हूं। Page 102 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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