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________________ ज्यों था त्यों ठहराया ये आत्मघात की सूचनाएं हैं। उन्हें भी पता नहीं कि वे क्या कह रहे हैं। मैं एक सौ पच्चीस वर्ष जीना चाहता हूँ- यह भी वासना थी। अगर परमात्मा पहले उठाना चाहता है- फिर क्या करोगे ? जिद्द करोगे कि मैं एक सौ पच्चीस वर्ष जीऊंगा ही जीऊंगा ? मैं तो एक सौ पच्चीस वर्ष जीना चाहता हूं। यह भी वासना थी और अब यह वासना है कि जल्दी उठा ले, क्योंकि अब मैं किसी काम का नहीं रहा। अब मेरी कोई मानता नहीं । मनवाने की इतनी आकांक्षा कि जीवन को भी कोई मूल्य नहीं रहा। मानें लोगे। मैं जो कहूं, वह मानें तो ठीक। तो एक सौ पच्चीस वर्ष जीना है और मानते ही नहीं कोई मेरी, तो अब जीने में भी क्या सार है। मतलब जीने का इतना ही अर्थ था कि अनुयायी आज्ञाकारी रहे मजा अनुयायी के आज्ञाकारी होने में था ऐसा जाल चलता है। अभी कल मैंने मोरारजी देसाई का एक वक्तव्य देखा, जिसमें उन्होंने भी ईश्वर पर थोप दिया सब--कि मैं तो ईश्वर की मर्जी से जी रहा हूं। यहां तक उन्होंने कहा कि मैंने डिप्टी कलेक्टर होने के लिए जो दरख्वास्त दी थी, वह मैंने नहीं लिखी थी। मेरे प्रोफेसर ने लिखी थी। मैंने सिर्फ दस्तखत किए थे। अब मैं जानता हूं कि क्यों नहीं लिखी होगी! लिखते बनती नहीं होगी ! नहीं तो कोई प्रोफेसर से दरख्वास्त लिखवाने जाता है? गए ही काहे को थे प्रोफेसर से दरख्वास्त लिखवाने? और जब दरख्वास्त नहीं देनी थी, तो दस्तखत किस लिए किए? फाड़ कर फेंक देते कोई मजबूरी थी कि प्रोफेसर ने दरख्वास्त लिख दी और तुम्हें दस्तखत करने ही पड़ेंगे? अरे, जब तुम्हें नौकरी नहीं करनी थी, तो दरख्वास्त फाड़ देते। जैसे दस्तखत किए, ऐसे फाड़ कर जयराम जी करके घर आ जाते! पहले तो गए क्यों? फिर उसने दरख्वास्त कैसे लिख दी तुम्हारे बिना कहे ? किसने उसे बता दिया कि कौन सी नौकरी के लिए दरख्वास्त लिखे और दस्तखत तुमने किए तो दस्तखत भी उसी को करने देने थे, कि जब परमात्मा को दिलवानी ही होगी नौकरी, तो दस्तखत कोई भी करे, वह तो दिलवा कर रहेगा। अरे, परमात्मा के खिलाफ कोई काम हो सकता है दुनिया में पता नहीं हिलता, तो डिप्टी कलेक्टर जैसी बड़ी नौकरी कोई परमात्मा के बिना आजा के हो सकती है? तो कह देते कि करेगा तो परमात्मा दस्तखत करेगा या तू कर मैं कौन दस्तखत करने वाला ! लेकिन सचाई यह होगी कि दरख्वास्त लिखते नहीं बनती होगी। लेकिन उसको छिपा लेने के लिए हम क्या क्या आयोजन कर लेते हैं। मुहम्मद यूनुस ने अपनी किताब में यह भी उल्लेख किया है कि मोरारजी देसाई इस बात की घोषणा करते फिरते हैं कि मैं पचास वर्ष से ब्रह्मचारी हूं। यह झूठ है सरासर झूठ है। उनका एक मुसलमान स्त्री से प्रेम था। उससे एक अवैद्य संतान भी हुई। वह संतान भी अभी जिंदा है। लेकिन उन दोनों को, स्त्री को और बच्चे को उन्होंने जबर्दस्ती पाकिस्तान भिजवा दिया-कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी वे पाकिस्तान में हैं। वह बेगम अभी जिंदा है, जिससे उनका प्रेम था। Page 103 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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