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________________ २) अम्हे मालाहिं घरं विहूसेमो । हम मालाओं से घर विभूषित करते हैं । (४) पंचमी विभक्ति: (Ablative ) अपादानकारक १) साहाए पुप्फाइं निवडंति । शाखा से फूल गिरते हैं । २) देवयाहिंतो जणा वरा लहंति । देवताओं से लोग वर प्राप्त करते हैं । (५) षष्ठी विभक्ति : (Genitive) संबंधकारक १) पसंसाए को ण सुहावेइ ? प्रशंसा किसे सुहावनी नहीं लगती ? २) महिलाणं मणं को जाणइ ? महिलाओं का मन कौन जानता है ? (६) सप्तमी विभक्ति : (Locative) अधिकरणकारक १) तस्स चित्तं पूयाए रमइ । उसका मन पूजा में रमता है । २) खगाणं नीडा डालासु सोहंति । पक्षियों के घोंसले डालाओं पर शोभते हैं । (७) संबोधन विभक्ति : ( Vocative) निमंत्रण, संबोधन १) नीले ! इह आगच्छ । नीला ! इधर आओ । २) देवयाओ ! अम्हे खमह । देवताओ ! हमें क्षमा करो । (जैनॉलॉजी - परिचय (१) पुस्तकातील पान - ३२ ते ३६ येथे घेणे) भूतकाल (Past Tense) जो क्रिया घटी हुई है, उसके लिए हम भूतकालिक क्रियापदों का उपयोग करते हैं । के प्रत्यय भूतकाल पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष एकवचन इत्था इत्था इत्था अनेकवचन इंसु इंसु
SR No.009953
Book TitleJainology Parichaya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2010
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 KB
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