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________________ चाणक्यसूत्रा पहले मनुष्यसे उस मागमें ईंधन डलवानेका सिद्धान्त मान लेना और फिर ससी मनुष्यसे यह बाधा भी करना कि वह अपनी इच्छा या कानूनके भयसे समानताके सिद्धान्तमें बंधकर रहे यह एक असंभव मूढ कल्पना है। यह तो मांसलोलुप सिंहके सामनेसे उसका मांस उठा लेनेवाली अत्यन्त उत्तेजक कल्पना है। यह तो खुल्लमखुल्ला भोगको हो जीवनका लक्ष्य मान लेना और मानवसमाजको मनुष्यताकी ओर प्रोत्साहिन न करके भोगसंग्रहमें प्रोत्साहित करना है। मनुष्यको भोगसंग्रहमें प्रोत्साहित करना उसे उस भोगाकांक्षाको ओर ले जाना है जिसका कोई अंत नहीं है जिसकी भूख कभी मिटती नहीं जो भयंकरसे भयंकर पाप करनेसे डरती नहीं। जिसे संसारभरको अपनी वध्य माखेट बनाने में कोई संकोच होना संभव नहीं। भोगाकांक्षाको छूट मिल जाना सचमुच समाजघाती कल्पना है। भोगाकांक्षाका खुलकर खेलने देनेसे समाजमें पारस्परिक धातप्रतिवात आदि अनेक चिकित्स्य उलझने पैदा हो जाती है। इसलिये पहले तो भोगाकांक्षाको मान्यता देना और फिर उससे समानताकी सीमामें बंध कर रहनेकी भाशा बाँधना सम्यावहारिक लक्ष्य है । इस दृष्टि से इन साम्यवादियों और समाजवादियोंका लक्ष्य भन्यावहा. रिक है । इसलिये हम इन अव्यावहारिक लक्ष्यवाले साम्यवादी समाजवादियोंको पाश्चात्य साम्राज्यवादियोंका ही नामान्तर करना चाहते हैं और इसे समाजके लिये उतना ही कलहवर्धक तथा प्रशान्त बना डालनेवाला पा रहे है जितना कि पाश्चात्य साम्राज्यवादियोंको पाते हैं । कैसे पाते हैं सो भी ध्यान देकर सुन लीजिये-- ये लोग एक ओर तो साम्राज्यवादियों की परराष्ट्रपर भाक्रमण करनेवाली ध्वंसात्मक युद्धनीतिका विरोध करके संसारको अपनी ओर भाकृष्ट करने का प्रयत्न करते हैं और दूसरी ओर विश्वशान्ति या छोटे बडे मिन भिन्न राष्ट्रोंके पारस्परिक शान्तिपूर्ण सहावस्थानके एक खोखले सिद्धान्तका मावि. कार करके संसारकी भोली जनताको ठगते चले जा रहे हैं । जो पार्टी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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