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________________ अनार्यवादोंकी आलोचना मिन भिन्न देशों में उचित अनुचितका विधार स्यागकर किसी भी उपायसे शासक जाति बन गई है उन सबके साथ न लडनेका समझौता करके अपने देशकी जनता पर प्रभता करते रहने या वहांकी जनताकी लटका ठेका लिये रहने और उसपर अपनी शोषणनीति चलाते रहने में निष्कंट बने रहना ही इन लोगोंके विश्वशान्ति नामके पलाश कुसुमायमान निर्गन्ध सुन्दर ध्येयकी परिभाषा है। इन लोगोंकी विश्व-शान्तिके पेटमें स्थार्थलोलु. पता काम कर रही है। इन लोगों की विश्वशान्ति केवल इतना चाहती है कि संसारभरकी शासक जाति बनी हुई प्रभुतालोभी पार्टियां परस्पर संगठित रहें, अपने अपने अधिकार क्षेत्र में निर्विघ्न मनमाना अत्याचार करती रहें उनके ऐसा करने में कोई किसीको न टोके, कोई किसीका प्रतिद्वन्द्वी न बने और ये लोग विश्वकी अत्याचारित जनताके घरोंमें राष्ट्र की आभ्यन्तरिक अशान्तिकी भाग अनन्तकाल तक सुलगाते रहने में स्वतन्त्र रहें । मापने भोगवादियोंकी विश्वशान्तिका खोखलापन देखा । वह वास्तव में अशान्ति ही है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखना चाहें तो भारतको देख लीजिये- भारत जैसे प्राकृतिक सीमाभोंसे सुरक्षित मनादिकाल से भखण्ड राष्ट्रको राज्यलोभी दो पार्टियोंके अप्रजातांत्रिक समझौतेने दो विद्यमान खण्डों में बाँट कर राष्टकी प्रभ जनताको अकथनीय अत्याचारोंका माखेट बना डाला और उसे अनाथालयों जैसे दूषित शरणार्थी नामसे कलंकित करके उसपर मनमाना शासन करते हुए उसकी मनुष्यताको विकसित न होने देनेवाला अशान्तिकारक निर्विरोध राजकीय षडयन्त्र चल रहा है। संसारकी वर्तमान राजनीति के अनुसार यह षड्यन्त्र भी भोगवादी शासक जातियोंकी विश्वशान्ति में सम्मिलित माना जा रहा है। अपने स्वेच्छाचारी शास. नकी सगमताके लिये राष्टकी वास्तविक स्वामिनी जनताको मनुष्यतासे हीन, मनैतिक, चाटुकार, निःशस्त्र, नपुंसक, पेट पूजक बनाकर रखना प्रभु. तालोभी राजनीति नहीं है तो क्या है ? इन लोगों की भौतिक उन्नतिकी मापात मनोरम योजनायें अपने दुधारु पशुओंके लिये अच्छा चारा उपजा
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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