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________________ चाणक्यसूत्राणि चाणक्य मनुष्यकी पशुशक्तिका उपासक नहीं था । वह तो मानव हृदकी शान्तिका उपासक और पुजारी था। वह लोगों की मानसिक शान्तिको ही राष्ट्रका बल मानने वालोंमें था । आजका पाश्चात्य अनार्य साम्राज्यवाद जडदेहकी भोगाकांक्षा या भोगकंडूतियोंका उपासक है । जडदेद्दों की भोगेच्छाके ऊपर अपनी समाजव्यवस्था बना लेना दुष्परिणामी कल्पना है इसलिये देद्दोंकी भोगेच्छाओं के आधारपर समाजव्यवस्था बनानेके संबन्ध मैं आजके पाश्चात्यनुकरणी भारतको सावधान रहना है। जडदेद्दोंकी भोगेच्छा ही इन अनायें साम्राज्यों की पृष्ठभूमि है । I वर्तमान राजनैतिक साम्यवाद, समाजवाद आदि अनार्यवादोंकी आलोचना चाणक्य वेदान्तप्रतिपादित आत्यन्तिक दुःखनिवृत्तिके उपासक थे । अनार्य साम्राज्योंकी निन्दा करनेवाला पाश्चात्य समाजवादी और साम्यवादी एक ओर तो साम्राज्यवादकी निन्दा करता और दूसरी ओर जडदेहकी उस भोगाकांक्षा या भोगवादको छोडनेको उद्यत नहीं है जो अनार्य साम्राज्यवादका मूल है । पाश्चात्योंके समाजवाद और साम्यवाद तथा उनके अनार्य साम्राज्य सबकी भोग ही एकमात्र आधारशिला है । पाश्चात्य या पाश्चात्य ढंगका समाजवादी और साम्यवादी अपने भोगवादी पाश्चात्य वातावरणके आनुवंशिक दोषसे पराभूत होकर जडदेहकी भोगेच्छासे आगे सोचने में नितान्त पंगु है । भोगवाद पाश्चात्य देशोंकी मज्जा तक जा पहुँचा चुका हुआ असाध्य रोग है । इसके विपरीत चाणक्य त्यागवादी भारतका सुपूत था । ६२४ वह तो मनुष्य की सुखेच्छाको ही दुःख माननेवाले लोगों में से था । वह सुखेच्छा के नियन्त्रण पर ही साम्राज्यकी प्रतिष्ठा करनेवाला था । वह सुखेच्छाको ही पापका मूल मानकर उसे राजशक्तिसे नियन्त्रित करना चाहता था। वह मनुष्यकी सुखेच्छा के नियन्त्रणमें आजानेको ही समाजकी शान्तिकी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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