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________________ आर्थिक समाजरचनाके दोष में रह सकता या शापित लोग नीतिसरी पर रह सकते हैं | यदि दण्डनीति शापक लोगोंके ऊपर अपना जाव नहीं हो सकेगी तो राज्यसंस्था अनिवार्य रूप नविन दो जायगी जी समाजके बड़े लोग छोटोकोक्त का डास चाणक्य हा तत्कालीन भारतका अनेक गणराज्यों में विभक्ता ही सारी सामूहिक दार्दिके प्राहुर्मुहानेका विघ्न बना हुआ था ५८९ उस ममय भारतीय राज्य शरव बाई आदि भिन्न अपने अध्यात्मिक आदर्शसे भी लधिक भित्र सम्प्रदायों के प्रभाव लाये हुए और इसी समझे हुए असामाजिक आदर्शको राजनैतिक महत्व देते थे । इस कारण देशकी राजनीति भी पत्र हो रही थी । यह सब देखकर चाणक्यको साम्राज्यनिर्माणका यही मत्सर आदर्श उप युक्त प्रतीत हुआ कि तरारा ऊपर भी एक केन्द्रिय राज दण्ड स्थापित करके देश के राजनैतिक आदर्शको रक्षा की जाय। देशमें इन समस्त गणराज्योंको किसी एक राजपलाये बिना सरकी सामूहिक रक्षा नामका कर्तव्य से किसी भी प्रकार नहीं पलवाया जा सकता | चाणक्यको स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि प्रान्तीय या स्थान विशेषसे सम्बन्ध रखनेवाली संकीर्ण दृष्टि राखनेवाले गणराज्योंको भरको चिन्ता रख सकनेवाली किसी शकिमती प्रभुदत्ताके आज्ञापालक बनाये विना वह साम्राज्यनिर्माण किसी भी प्रकार नहीं हो सकता जो इस सम के भारतीय राष्ट्रकी अनिवार्य बावश्यकता है। वे मानते थे कि देशभर के लोगों में अपने व्यक्तिगत जीवनके लिये उत्तरदायि पैदा हो जाना ही साम्राज्यनिर्माणकी मुख्य आधारशिला है। आर्य चाणक्यको देशमें इस उत्तरदायित्वको जगाना आवश्यक दीख रहा था। नैतिकता ही मानवजीवनका सार है। मानवजीवनको सार नैतिकताको अपने व्यावहारिक कर्म क्षेत्र में सुरक्षित रखना ही समाजकल्याणकारी व्यक्तिगत उत्तरदायित्व है। इस उत्तरदायित्वको राष्ट्रके सामने युक्तिपूर्वक उपस्थित करके राष्ट्रसे स्वीकृत करा लेना चाणक्यकी सफल नीति थी । वे
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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