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________________ ५८८ चाणक्यसूत्राणि नहीं जा सकता । इस कारण समाजका पुनर्निर्माण अर्थ के आधारपर न करके सत्य तथा न्यायके आधार पर करना चाहिये । सत्य तथा न्यायके माधारपर समाजका पुनर्निर्माण करने से ही भादर्श २१ करित्रका निर्माण किया जा सकता है । न्याय तथा सत्य के लाधारपर समाज का पुनर्निर्माण किये बिना देशको शादर्श चरित्रवाला राजा नहीं मिल सकता । कौटल्य जो उन दिनों आसेतुहिमाचल भारतको धल छालता फिर रहा था उसमें उसका यही महान् उद्देश्य था कि लोगों के सामने सत्य और न्यायके आधारपर समाजरंगठन करके देश को आदर्श राजा देकर व्यावहारिक रूपमें समझा दिया जाय कि देखो सादर्श राष्ट्र चरित्र तथा आदर्श राजचरित्र बनानेकी यही एकमात्र विशि। कौर मुख भारत के बंधनहीन छिन्नलिन समाज की दयनीय अवस्था उपस्थित यो । भारके छोटे-छोटे गणराज्यों को दुर्बलताओंने चाण. क्यको व्यक्ति र डाला था। वह अपने देश के समस्त गणराज्यों के सम्म लन एक सुपरिचालित विमाल राज्यकी तथा उनीके साथ उस विशाल राज्यके संचालक सुयोग्य राजाको आवश्यकता अनुभव कर रहा था। वह देख रहा था कि यदि दशके लिये कोई एक प्रतापी राजा न छांट लिया गया तो इतने विशाल मनुष्यसमाजका छिन्नभिन्न बने रहना अनिवार्य और नष्ट हो जाना निश्चित है। चाणको मानवसमाज के ध्वंसको रोकने के लिये वर्मात्रमानुकूल दगडनीति के द्वारा समस्म समाजको संगठित करके नीतिमान बनाये रखने की आवश्यकता प्रतीत हुई। उन्हें दीया कि किसी केन्द्रवर्ती रामाके हाथों में शक्ति दिये बिना एक संस्कृतिवाले इस देशकी दण्डनीति प्रभावशाली नहीं रह सकती। वे यह भी भली प्रकार समझते थे कि देशकी दण्डनीतिका जहां शालितों तथा शत्रुओंके ऊपर प्रभावशाली रहना आवश्यक है वहां उसको शासकोंके कार प्रभावशाली बनाकर रखना उससे अधिक आवश्यक है । दण्डनीति के शासकोंके ऊपर पभावशाली बनकर रहने से ही शासन यन्त्र सुपरिचालित
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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