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________________ चाणक्यसूत्राणि अब देशवासियों को राष्ट्रीयता लिखानाही एकमात्र कर्तव्य अपनी अनिवार्यता लेकर चाणक्य के सामने ला उपस्थित हुआ। उस समयकै देशके सौभाग्य से भारतवासियों को सीयाका जी! ३त्य पार देने के लिये चन्द्रगुप्त की शानियको सुधार लाकी सेनाके लिये हाथ जोडकर न रिने । "यीशा संबंधी प्रत्येक योजना अ मान्दार र चन्द्रगुः । व्रत बन गया ५। चाय और द हा तासाशनियोका भूतपूर्व ममिलना १ पाने वाले निर्देशा. नुपार सिकन्दर ईरान RE को ही १५ मा माकर ईरान की सहायता के लिये को क नाबनाया था। चागल की चाशयति समर्पmको जो भावना थी वह उसका एक निष्काम कर्मयपालन था। ममर्पण किली मावी मौतिक लाभ के लिये नहीं किया गया था। परन्तु ईश्वरीय व्यवस्थाकी भचिन्त्य इच्छासे इस जामसमर्पणो में चन्द्रगत को भारत का सम्राट ही नहीं बना दिया किन्तु संसार भरके सम्राटोले भी अधिक यशानी बना डाला । ईरान में सिकन्दरसे अपनी अश्वक सेनामोंको लजाले के पास से चन्द्रका प्रत्येक संग्राम भारन मनुष्यता तथा राष्ट्रीयताको जगाने की ही दृष्टि से किया जाने लगा था। चन्द्रगुपने अपने जीवन में जितने संग्राम किये सबमें संपूर्ण भारतकी जाग्रत मनुष्यता का पूरा सहयोग मिलने लगा था । चन्द्र गप्तने अपने राजनैतिक प्रयत्नों में धार्मिकताको प्रमुख स्थान दिया था उसके कारण इस धर्मप्राण देश में जमके लिये अनुकूल वातावरण प्रस्तुत हो चुका था। यही कारण था कि देश में उसकी प्रत्येक समर यात्राको विजय मिलना सुनिश्चित होगया था। ___ अनथक कर्मवीर चाणक्यने भारतवे धर घरमें यह भादर्श फैला दिया था कि कर्म-सन्यासका आदर्श रामघाती होने के कारण आध्यात्मिकता नहीं है। धर्मको जंगलोंकी गुफाओं में भास्मप्रकाश ज करके उसे राष्ट्र में ही आत्म.
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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