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________________ आर्य चाणक्यका इतिवृत्त ५७९ रक्षामें सहयोग देना मगध की ही रक्षा है । पश्चिमोत्तर भारतके नागरिकोंपर होनेवाला अत्याचार मगधके नागरिकों पर ही अत्याचार है। नागरिक चाहे पश्चिमोत्तर भारतका हो या दक्षिणका, देशके प्रत्येक सच्चे नागरिककी दृष्टि में वह अत्याचार समस्त राष्ट्रपर अत्याचार है । देशके किसी भी प्रान्तके नागरिक पर होनेवाले अत्याचारका दमन समस्त समाजको संगठित शक्तिसे किया जाना चाहिये।'' परन्तु संकीर्ण दृष्टि मगधराज प्रान्तीयताके पंकमें सना हुआ था । उसपर इस सुझावका कोई प्रभाव नहीं पडा। यह देखते ही चाणक्य के कर्तव्यशस्त्रको एक नया मोड ले लेना पडा। तब चाणक्यके सामने इससे भी बड़ा राजनैतिक कर्तव्य मा उपस्थित हुआ। माधराजकी हो नहीं देशभर राजालों को राही संकीण मानसिक स्थिति थो। देशके राजाओंकी इस मानसिक स्थिति को देख कर चाणक्यको निश्चय करना पड़ा कि दशभरकी संपूर्ण बुद्धिको सुमार्गपर लाये विना भारतकी रक्षा असंभव है। अबतक चाणक्यके राष्ट्ररक्षा संबन्धी बयानों में अंशत: शाखा सिंचनकी स्थिति अपनाई हुई थी। चाणक्य को भारत रक्षा के संबन्ध में मगधराजकी भोरसे निराश होने ही शाखा सिंचनको नीति त्याग देनी पड़ी और उसके स्थानपर भूल पाचन की नीति मुख्य रूपसे अपना लेनी पडी। दूसरे शब्दों में उन्हें भारत को एक रायका रूप देने का निश्चय करना पड़ा। क्योंकि ऐसा किये बिना भारत के उद्धारका अन्य कोई मार्ग शेष नहीं रह गया था। उन्हें दीखा कि देश में कहीं भी राष्ट्रीय उत्तरदायित्व काम नहीं कर रहा है। जबतक देशकै घर घरमें जाकर देशके लोगोंको गपीय उत्तरदायित्वका जीवित पाठ नहीं पढाया जायगा तबतक राष्ट्र संगठन असंभव है । जबतक देश के छोटे राजाओं का अपना अपना अलग अलग राग अलापना बन्द नहीं किया जायगा और जबतक राष्ट्रको एक महाकार्य के रूपमें संगठित नहीं कर लिया जायगा तबतक राज्यव्यवस्थाको समाजका संरक्षक नहीं बनाया जा सकता।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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