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________________ आर्य चाणक्यका इतिवृत्त ५८१ प्रकाश करके रहना चाहिये। कर्मसंन्यास या पारलौकिक चर्चा मनुष्यता घाती कर्मविमुखता है । मनुष्य को कर्म त्यागना नहीं है उसे तोड ले सुधा. रना है। उसे भविष्य नहीं सुधारका उसे तो केवल अपना वर्तमान सुधा. रना है । मनुष्यका कर्मक्षेत्र भविष्य नहीं है किन्तु वर्तमान ही मनु यकी कर्तव्य भूमि है। मनुष्य व्यक्तिगत मोक्षकी लीक कल्पनाको त्याग दे और राम-कल्याणमें ही रमल्याण समझकर अपने आपको राष्ट्र सेवा लगा दे यही मानव-धर्म है। चाणक्यको दीख रहा था कि भाजके भारतके द्वारपर पश्चिमकी म्लेच्छ शक्ति भारतको आदच्युत करके भारतीय मनुष्यताको पदालित करने के लिये उपस्थित है। चाणक्य भारत के लोगोंको समझा रहा था कि पश्चिमोत्तर भारत के मनुष्य समार होने वाला यह माक्रमण भारतको मनुष्यता और राष्ट्रीयता पर साक्रमण है। प्रत्येक भारतवासी इस माक्रमणको अपनी होमप्यता तथा समीयता पर माक्रमण मानकर इससे लोहा लेने के लिये धर्मत: बाध्य है। जो भारत. वासी अपनी मनुष्यता तथा राष्ट्रीयताको रक्षा के नामपर जाततायीसे लोहा लेने के लिये धार्मिक दृष्टिसे विवश है वहीं सच्या माध्यामिक है, वह सचानोति. मान है और यही सच्चा शूरवीर है । मनुष्यता ही राष्ट्रीयता है। मनुष्यता ही मानवका माराध्य सत्यस्वरूप ईश्वर है। नैतिकता ही मनुष्यताका संरक्षण करने वाली है । क्योंकि मनुष्य समाज में कहीं कहीं भी किसी पर होनेवाला मासुरी लाकमण संपूर्ण राष्ट्रभरकी मनुष्यसापर आक्रमण होता है, इस. लिये संपूर्ण राष्ट्रका प्रत्येक मानव उस बासुरी भाक्रमण का दमन करने के लिये जिस धार्मिक दृष्टिले बंधा हुआ है वह धार्मिक बन्धन हो सच्ची साध्या. स्मिकता, सच्ची नैतिकता और सच्ची शूर वीरता है।' चाणक्य के ये उपदेश उस समयके भारतीय समाजमें उपरवान न होकर श्रद्धाके साथ सुन लिये गये। चन्द्र गुप्तने चाणक्य के निर्देशानुसार भारतको केवल शस्त्र बल से ही संगठित नहीं किया किन्तु भारतके मनुष्य समाजपर शस्त्रबलसे भी कहीं अधिक शनिः रखनेवाले मनन्त शक्तिसम्पन्न
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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