SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पापीको देखनेवाली प्रकृति तटस्थ रहने की भाज्ञा देकर दंडनीतिका भंग किया और समाजमें पापको प्रोत्साहन दे रही है । जब कि राष्ट्रमें दण्ड-यवस्थाके नामपर लोगोंसे भरपूर कर लिये जा रहे हो और रक्षाके नामपर पूरा व्यय किया जा रहा हो तब भी पापका अज्ञात तथा अदण्डित रह जाना राज्यसंस्थाकी हीनताका सूचक मानना पड़ता है। पापोंको पता न चला सकनेवाली और पापि. योको दण्डित न कर सकनेवाली राज्यव्यवस्थाको अपने हाथों में शासनसूत्र पकडे रहनेका कोई मौचित्य नहीं है। राज्यसंस्था बनाई ही इस कामके लिये है कि दण्डनीति के प्रयोगसे भौतिक परिस्थितिकी साक्षीसे प्ररछस पापों को प्रकाश में लाये । मास्यन्यायको रोकने के लिये ही तो राज्य संस्था बनाई जाती है। नहीं तो राज्यसंस्था राष्टके सिरपर व्यर्थका व्यय बन जाती है। समाजकी पवित्रताकी रक्षा करना राज्यव्यवस्थाका मुख्य कर्तव्य है । यदि राज्यव्यवस्था प्रच्छन्न पापियों का पता न लगा सके और उन्हें दण्डित न कर सके तो ऐसी राज्यसंस्था या ऐसे राज्य-कर्मचारीको तत्काल पदच्युतिका दण्ड देकर हटा दिया जाना चाहिये । प्रच्छन पापोंको भदण्डित न रहने देने के लिये राष्ट्रमें त्रुटि रहित सुयोग्य और सतर्कतासे पूर्ण कठोर आनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिये। दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति । दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्म विदुर्बुधाः ॥ ( मनु) दण्ड ही प्रजापर शासन करता है, दण्ड ही उनकी रक्षा करता है। दण्ड तब भी जागता है जब कि सारा संसार सोता है ।। सर्वो दण्डजितो लोको दुर्लभो हि शुचिर्नरः । संसार दण्डभय से सुमार्गपर रहता है दिना दण्डभय के सुमार्गपर चलनेवाले लोग तो करोडोंमें कोई होते हैं । ३३ ( चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy