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________________ ४८६ चाणक्यसूत्राणि विवरण- स्वामी के गौरव, बुद्धि तथा उसकी उपकार, भरण तथा रक्षाकी प्रवृत्तियों को उत्तेजित करते रहनेके लिये उसकी स्तुति करना अनु. जीवियोंके लिये लाभदायक होता है। भृत्य लोग गुणी स्वामीके प्रति कृतज्ञता तथा प्रभु भक्तिका प्रदर्शन करके प्रभु-भृत्य सम्बन्धको न टूटने दें और समाजमें प्रभुको लोकप्रिय बनानेके लिये उसका गुण-कीर्तन करके समाजकल्याणके काममें प्रभुके सहायक बनें। पाठान्तर --- स्वामी स्तोतव्यः सर्वानुजीविभिः।। पाठान्तर- न निन्दनीयः स्वामी स्तोतव्यः सर्वानुजीविभिः । धर्मकृत्येप्वपि स्वामिन एव घोषयेत् ॥ ५३१ ॥ अनुजीवी लोग राजाज्ञासे किये हुये लोकोपकारी धर्मकृत्योंको अपने न बताकर स्वामी या अपनी राज्यसंस्थाके ही किये बताया करें। विवरण- अनुजीवी लोग राष्ट्रभरमें स्वामी या अपनी राज्यसंस्थाकी धार्मिकताका प्रचार करके उसके लिये जनताका प्रेम और सहानुभूति प्राप्त करें । ऐसे करनेसे राजा या राज्यसंस्थाको राष्ट्रसेवा करनेमें अनुकूलता और सुकरता हो जाती है। पाठान्तर- धर्मकृत्येष्वपि स्वामिनमव घोषयेत् । पाठान्तर-- सर्वकृत्येष्वपि ,, ,, । सब कामों में स्वामीके ही कर्तापनकी घोषणा किया करे । ( राजाज्ञापालनमें विलम्ब अकर्तव्य ) राजाज्ञा नातिलंघयेत् ॥ ५३२ ॥ राजाशाके पालनमें अनुचित देर न करें। विवरण- राजाज्ञा टालनेसे राष्ट्र में दुराचारियों को दुराचार करनेका अधिक अवसर प्राप्त हो जाता है । राजाके आदेशके समयपर पालित होते
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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