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________________ स्वामीका यशोगान कर्तव्य इसने जनता के स्वतंत्र सामरिक संगठनको गैर कानूनी कर रखा है। इसके मूलमें यही दुर्बुद्धि छिपी हुई है कि जनता में उसके राष्ट्रद्रोही कृत्यों का विरोध करनेकी शक्ति न रहे । यदि वह वास्तव में राष्ट्रहितैषी सरकार होती तो उसके मन में ऐसी भीति कभी भी न होती । क्योंकि जनताकी स्वतंत्र सामरिक शक्ति उसकी राष्ट्रहितैषिताका अनिवार्य साथी कभी रहती । शस्त्रकानून उन्मूलित होते ही शांतिप्रिय जनता तत्क्षण संगठित होकर गांवगांव में शान्तिरक्षा में स्वयमेव समर्थ हो जाती । पाठान्तर - असहायो न पथि गच्छेत् । ( पुत्रस्तुति अकर्तव्य ) पुत्रो न स्तोतव्यः ॥ ५२९ ।। पुत्रकी स्तुति नहीं करनी चाहिये । विवरण - गुणी पुत्रका गुणग्राही होना पिताका अपराध नहीं है। प्रत्युत यह तो पुत्रको उत्साहित करनेवाला पितृधर्म है । परन्तु यह पितृधर्म पितापुत्र में ही सीमित रहना चाहिये । बाह्य जगत् में पुत्रकी स्तुति करना आत्म-प्रचारके समान ही श्रोताओंके कानों को भी कष्ट पहुँचाने तथा उनके मन में अविश्वास उत्पन्न करनेवाला अपराध होता है । पिताके मुखसे पुत्र - स्तुति उसे प्रभावहीन बना देती है। पुत्र-स्तुति पिता आत्म-स्तुति मानी जाती है । पुत्र के विशेष गुणोंकी स्तुति पिता के मुखको शोभा नहीं देती, प्रत्युत के उन गुणोंमें भी संदेह पैदा कर डालती है । पाठान्तर - न पुत्रः स्तोतव्यः । ४८५ ( स्वामीका यशोगान मृत्यकर्तव्य ) स्वामी स्तोतव्योऽनुजीविभिः ॥ ५३० ॥ भृत्य लोग गुणी स्वामीको लोकप्रिय बनाये रखनेके लिये जनता में उसके गुणोंकी प्रशंसा किया करें।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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