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________________ चाणक्यसूत्राणि (कौटुम्बिक स्वार्थके बलिदानकी स्थिति) ग्रामार्थं कुटुम्बस्त्यज्यते ॥ ३८४॥ जब किसीका कुटुम्ब ग्रामकी शान्तिका विघ्न बन रहा हो तब वह कुटुम्बको त्यागकर ग्रामको अपनाये रहे या उसका साथ दे। विवरण- मनुष्य ग्रामके सार्वजनिक कल्याणकी सुरक्षाके लिये पारि. वारिक क्षुद्र स्वार्थको त्याग दे । दूसरे शब्दों में अपने पारिवारिक स्वार्थको ग्रामके सार्वजनिक स्वार्थसे अलग न समझे । संसारमें जितने विवाद, कलह और युद्ध खडे होते हैं सब अपने स्वार्थको सार्वजनिक स्वार्थसे अलग मान रखनेसे ही होते हैं । यदि समाजमें सार्वजनिक कल्याणकी रक्षाकी प्रवृत्ति जाग उठे या जगा दी जाय तो देशमें सतयुग या रामराज्य भाजाय । (पुत्रत्यागकी स्थिति ) ( अधिक सूत्र ) कुटुम्बार्थं पुत्रस्त्यज्यते । पुत्रके कुटुम्बकी शान्ति में विघ्न बनजाने पर उसे त्याग दे और कुटुम्बको अपनाये रहे। विवरण- जिस पुत्रसे कुलकी रक्षाकी भाशा बांधी जाती है, उसीसे यदि कुलोच्छेदकी संभावना प्रबल होजाय तो उस पुत्रको त्याग देना कर्तव्य होजाता है और त्याग देना पड़ता है। इसलिये मनुष्य अपने समस्त परि. वारकी स्वार्थरक्षाके लिये अपने आत्मज पुत्र से संबंध रखनेवाली क्षुद्र स्वार्थ. बुद्धि को त्याग दे। कुटुम्बके नेताका कर्तव्य है कि वह परिवार के प्रत्येक सदस्य के साथ औरस पुत्रके समान बर्ताव करे । ऐसा न करनेपर कुटुम्बका नेतृत्व सुरक्षित नहीं रह सकता। ( सर्वत्यागकी स्थिति ) ( अधिक सूत्र) आत्मार्थं सर्वं त्यजति । अपने आत्मकल्याणके लिये (दूसरे शब्दों में अपनी आत्म.
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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