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________________ ग्रामीण स्वार्थके बलिदानकी स्थिति ३४५ यदि देशके माता-पिता लोग सत्यनिष्ठ न हों तो पुत्रों के सत्यनिरूपमें सच्चे विद्वान् बनने की कोई संभावना नहीं है । यदि अपने समग्र राष्ट्रमें मात्मरक्षाके बीज बोने हों तो सन्तानपालनके इस सिद्धान्तको राष्ट्र के प्रत्येक परिवारमें पलवाना होगा । मातापि का सत्यनिष्ठ होना हो सुसभ्य सन्तति. पालनका एकमात्र सिद्धान्त और आश्वासन है। व्यक्ति ही तो राष्ट्रका मूल है। परिवार ही तो व्यक्ति के जीवनतरुको हरा भरा रखने वाला उर्वर क्षेत्र है । परिवार ही मनुष्योंको चरित्र लिखानेवाले विश्वविद्यालय हैं । राष्ट्र के परिवार जिप परिमाणमें कर्तव्यशील होंगे राष्ट्र उसी परिमाणसे योग्य गुणी पुत्रों को उत्पन्न करसकेगा।। पाठान्तर-- पुत्रा विद्यादानार्थ प्रारम्भयितव्याः । यह पाठ महत्वहीन है। ( ग्रामीण स्वार्थ के बलिदान की स्थिति ) जनपदार्थं ग्रामं त्यजेत ॥३८६ ।। अपने ग्रामके देशद्रोही होजानेपर उस छोडकर देशका साथ द। विवरण- न्याय तथा शान्तिको सुरक्षामें ही देशका कल्याण है। जिप प्रामका मनुष्यसमाज न्यायनिष्ठ तथा शानिमिय हो वह ग्रामसमाज त्याज्य होजाता है अर्थात् उसकी देशद्रोहिताका विरोध करना कर्तव्य होजाता है। सूत्र कहना चाहता है कि राष्ट्र के सार्वजनिक हितको सुरक्षित रखने के लिये ग्रामके क्षुद्र स्वार्थका बलिदान करदे। ग्राम भरने सीमित अस्तित्वको राष्ट्रसे पृथक न समझकर, राष्ट्र के प्रति मारमसमपण करके अपना क्षुद्रत्व मिटा डाले। पाठान्तर-- जनपदार्थ ग्रामस्त्यज्यते। राष्ट्रहित के लिये प्रामका क्षुद्रहित त्याग दिया जाता है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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